क्राइमछत्तीसगढ़

बिलासपुर: अपोलो अस्पताल पर FIR, फर्जी डॉक्टर की लापरवाही से गई कई लोगों की जान

राजेंद्र शुक्ल की मौत से जुड़ा है मामला, परिजनों ने लगाए गंभीर आरोप

कौन हैं ये फर्जी डॉक्टर?

बिलासपुर में स्थित अपोलो अस्पताल एक बार फिर विवादों में है। इस बार मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं, बल्कि सीधे तौर पर फर्जी डॉक्टर की नियुक्ति से जुड़ा है, जिसकी वजह से कई लोगों की जान चली गई। अस्पताल प्रबंधन पर अब एफआईआर दर्ज हो चुकी है।

आरोपों के घेरे में हैं डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव, जो खुद को डॉ. जॉन केम बताकर कई सालों तक मरीजों का इलाज करते रहे। इनका नाम सबसे पहले तब चर्चा में आया जब मध्यप्रदेश के दमोह स्थित मिशन अस्पताल में इलाज के दौरान 7 हार्ट पेशेंट्स की मौत हुई।

बताया गया कि दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच डॉ. जॉन केम ने खुद को लंदन का कार्डियोलॉजिस्ट बताकर करीब 15 हार्ट ऑपरेशन किए। जब एक मरीज के परिजनों को शक हुआ, तो उन्होंने जांच करवाई और पूरा मामला उजागर हो गया।

मानवाधिकार आयोग भी हुआ एक्टिवइस फर्जीवाड़े का मामला तब तूल पकड़ने लगा जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने 4 अप्रैल को इस मामले को सोशल मीडिया पर उठाया। इसके बाद न सिर्फ दमोह पुलिस हरकत में आई, बल्कि पूरे देश में स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठने लगे।

अब बिलासपुर कनेक्शन भी आया सामने

जांच में सामने आया कि यही फर्जी डॉक्टर बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में भी कार्यरत रह चुका है। और यहीं पर 2006 में छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले अध्यक्ष पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी।

उनके बेटे प्रदीप शुक्ल का दावा है कि उनके पिता की मौत के पीछे भी इसी डॉक्टर की लापरवाही और फर्जी पहचान थी। अब ये सवाल उठने लगे हैं कि आखिर एक फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट को अपोलो जैसे बड़े अस्पताल में कैसे नौकरी मिल गई?

अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही पर केस

डॉ. जॉन केम की गिरफ्तारी तो दमोह से पहले ही हो चुकी है, लेकिन अब सवाल अपोलो अस्पताल प्रबंधन पर खड़े हो गए हैं। कैसे बिना उचित जांच के एक फर्जी डॉक्टर को कार्डियोलॉजिस्ट की पोस्ट दी गई? क्यों मरीजों की जान से खिलवाड़ किया गया?

इन तमाम सवालों के बीच बिलासपुर पुलिस ने अस्पताल प्रबंधन पर FIR दर्ज कर ली है। माना जा रहा है कि अब इस केस की जांच और गहराई से की जाएगी, जिसमें अस्पताल के उच्च अधिकारियों की भूमिका भी जांच के दायरे में आ सकती है।

अब ये मामला सिर्फ एक डॉक्टर या एक अस्पताल तक सीमित नहीं रहा। यह एक सिस्टम फेलियर है, जहां जिम्मेदारियों की अनदेखी की कीमत कई लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

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