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छग: धमतरी जिले के इस गांव में 12 सदी से नही हो रही होलिका दहन, क्या है इसके पीछे की कहानी…

 छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh) के धमतरी ( Dhamtari) शहर से 7 किमी दूर एक गांव ऐसा है जहां होली ( Holi) मनाई तो जाती है, लेकिन जलाई नहीं जाती. यहां के तेलिन सत्ती गांव में बारहवीं सदी से यहां यह परंपरा कायम है. इसके पीछे एक महिला के सती होने की कहानी है. इस पुरानी मान्यता अब तक कायम है. यहां आज भी लोग होली खेलते तो हैं, लेकन होलिका दहन नहीं करते हैं.

भारत को उत्सवों का देश कहा जााता है, यहां के प्रमुख पर्वो में होली भी शामिल है. हर साल फागुन की अमावस्या को रंग खेला जाता है और इसके एक दिन पहले होलिका दहन होता है. सारा देश इसी परंपरा के साथ होली मनाता है, लेकिन धमतरी के तेलिन सत्ती गांव में कुछ अलग ही परंपरा है. इस गांव मे होली पर रंग गुलाल तो होता है, लेकिन होलिका दहन नहीं होता. होली नहीं जलाने की प्रथा आज की नहीं बल्कि 12 वीं शताब्दी से चली आ रही है. गांव के 90 साल के बुजुर्ग देवलाल सिन्हा पूरी कहानी और मान्यता को विस्तार से बताते हैं. देवलाल की मानें तो सत्ती माता को नाराज करने वालों ने या तो संकट झेला है या उनकी जान ही चली गई.

एक महिला के सती होने की कहानी से जुड़ी है परंपरा
बुजुर्ग कहते हैं कि एक महिला के सती होने की कहानी से जुड़ी है यह परंपरा, जिसका पालन वर्षों से हर पीढ़ी करती चली आ रही है.  देवलाल सिन्हा, जीवनलाल, बीएल सिन्हा, विनोद सिन्हा आदि ने बताया कि किंवदंती है कि गांव में एक जमींदार था। वे सात भाई व एक बहन थे.बहन की शादी के बाद दामाद घरजमाई बनकर रहता था। सैकड़ों एकड़ की खेती थी. एक बार खेत का मेड़ टूट गई.सातों भाई ने मेड़ को बांधने की खूब कोशिश की, लेकिन वह फिर टूट जाती.एक दिन गुस्साए सातों भाइयों ने बहनोई को मारकर उसी मेड़ में गाड़ दिया.

बहन ने पूछा तो उन्होंने सारी बता बता दी. इससे व्यथित बहन उसी मेड़ के पास पति की चिता सजाकर सती हो गई. इसके बाद से ही गांव में होली नहीं जलाई जाती. इतना ही नहीं, गांव की सीमा के अंदर किसी की चिता भी नहीं जलाई जाती. इसकी याद में गांव में जय मां सत्ती मंदिर भी बनाया गया है.

इस गांव में सिर्फ होली ही नहीं बल्कि रावण दहन और चिता जलाना भी मना है. किसी की मृत्यु होने पर पड़ोसी गांव की सरहद में जाकर चिता जलाई जाती है. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो, गांव में कोई न कोई विपत्ति आती है. ये इस दौर में अविश्वसनीय, अकल्पनीय लग सकती है.  आज डिजिटल युग मे जीने वाले आज के युवा भी इस प्रथा को इस मान्यता को अपना चुके है. गांव की गीतांजलि जो इस साल ही बीए पास हुई है, इसे प्रामाणिक भी बताती हैं. गीतांजलि के मुताबिक, इस गांव में हर शुभ काम तेलिन सती का आशीर्वाद लेने के बाद ही किया जाता है. बुजुर्गों इस परम्परा को कायम रखने के लिए सभी को कहा है, जिसे निभाया जा रहा है.

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