छत्तीसगढ़ स्वामी आत्मानंद संविदा शिक्षक एवं कर्मचारी संघ का विशाल आंदोलन
रायपुर। स्वामी आत्मानंद संविदा शिक्षक एवं कर्मचारी संघ ने अपनी दो प्रमुख मांगों के समर्थन में 12 जनवरी 2025 को रायपुर (तूता) में एक विशाल प्रदर्शन और आंदोलन का आयोजन करने का निर्णय लिया है। इस आयोजन में राज्य के करीब 12,000 संविदा शिक्षक और कर्मचारी एकत्र होकर अपनी मांगों को शासन के समक्ष रखने का प्रयास करेंगे। संघ का मानना है कि यह कदम राज्य की शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की दिशा में एक अहम प्रयास साबित होगा।
संघ के प्रदेश अध्यक्ष दुर्योधन यादव ने सभी संविदा शिक्षकों और कर्मचारियों से इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष संविदा कर्मियों के हक और अधिकारों के लिए है। यदि हम संगठित होकर अपनी आवाज बुलंद नहीं करेंगे, तो हमारे अधिकारों की अनदेखी होती रहेगी।
संघ की प्रमुख मांगें:
1.संविदा शिक्षकों का नियमितीकरण
संविदा शिक्षक, जो राज्य के विभिन्न सरकारी स्कूलों में वर्षों से कार्यरत हैं, उन्हें स्थायी नियुक्ति मिलनी चाहिए। संघ का कहना है कि संविदा शिक्षकों ने अपनी पूरी ईमानदारी से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में योगदान दिया है, और उनके काम को स्थायी रूप से पहचान मिलनी चाहिए। सरकार को संविदा शिक्षकों को नियमित करना चाहिए ताकि वे आत्मविश्वास के साथ अपने कार्य में लगे रहें और शिक्षा व्यवस्था में योगदान दे सकें।
2.समान कार्य के लिए समान वेतन तथा नियमित वेतन वृद्धि
संविदा शिक्षकों को उनके समकक्ष नियमित शिक्षकों से कम वेतन मिलता है, जबकि उनका कार्य वही होता है। संघ का यह कहना है कि समान कार्य के लिए समान वेतन की नीति लागू होनी चाहिए, ताकि संविदा शिक्षकों को न्याय मिल सके। उनका काम और योगदान नियमित कर्मचारियों के समान ही महत्वपूर्ण है, इसलिए वेतन और अन्य लाभों में भेदभाव नहीं होना चाहिए।
3.शिक्षा विभाग में संविलयन
पूर्व शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की सदन में घोषणा अनुरूप संविदा शिक्षकों की तीसरी प्रमुख मांग शिक्षा विभाग में संविलयन की है। संघ का मानना है कि संविदा शिक्षकों और कर्मचारियों को स्थायी और समान अधिकार मिलना चाहिए। यदि संविलयन प्रक्रिया लागू होती है, तो सभी संविदा शिक्षक और कर्मचारी शिक्षा विभाग के नियमित कर्मचारियों के समान अधिकार, वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। यह कदम उनकी स्थिति में स्थिरता लाएगा और उन्हें बेहतर कार्य प्रदर्शन करने के अवसर प्रदान करेगा। संविलयन के बाद सभी कर्मचारियों के लिए एक समान नीति होगी, जो शिक्षा व्यवस्था में समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा देगी।
प्रदेश अध्यक्ष दुर्योधन यादव जी की अपील:
प्रदेश अध्यक्ष दुर्योधन यादव ने सभी संविदा शिक्षकों और कर्मचारियों से इस आंदोलन में भाग लेने की अपील करते हुए कहा, “हमारा यह आंदोलन केवल हमारे अधिकारों के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा के अधिकारों के लिए भी है। यदि हमें समान वेतन, नियमितीकरण और सम्मान नहीं मिलता है, तो हम अपनी स्थिति में सुधार के लिए आवाज उठाएंगे। हम सभी को एकजुट होकर इस आंदोलन का हिस्सा बनना होगा ताकि सरकार हमारी मांगों को गंभीरता से ले और उचित कदम उठाए। यह आंदोलन हमारे और हमारे बच्चों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।”
उन्होंने आगे कहा, “आप सभी से अनुरोध है कि इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लें और शासन तक हमारी आवाज पहुँचाने में मदद करें। केवल एकजुटता में ही हमारी शक्ति है। हम सभी को मिलकर अपने हक के लिए संघर्ष करना होगा।”
संविलयन और स्थायीत्व की दिशा में कदम:
संविलयन का विचार भी इस आंदोलन का एक हिस्सा है। संघ की यह मांग है कि यदि संविदा शिक्षकों का नियमितीकरण नहीं किया जाता है, तो उन्हें स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएँ मिलनी चाहिए। प्रदेश अध्यक्ष यादव ने बताया कि यह आंदोलन केवल संविदा शिक्षकों के लिए नहीं है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए है जो शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है।
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संघ के अन्य पदाधिकारियों की प्रतिक्रिया:
संघ के महासचिव उनीत राम साहू ने भी इस आंदोलन की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि संविदा शिक्षक और कर्मचारी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है, और उन्हें उनके अधिकार मिलने चाहिए। उन्होंने सभी संविदा शिक्षकों और कर्मचारियों से आंदोलन में हिस्सा लेने की अपील की और कहा कि यह केवल व्यक्तिगत अधिकारों का सवाल नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज और शिक्षा व्यवस्था की बेहतरी के लिए भी जरूरी है।
आंदोलन की तात्कालिक आवश्यकता पर संघ के कोषाध्यक्ष अविनाश मिश्रा ने कहा कि संविधान और लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन संविदा शिक्षक और कर्मचारी अपने अधिकारों से वंचित हैं। शिक्षा विभाग में व्याप्त असमानताओं को दूर करने और कार्यरत कर्मचारियों को समान अवसर, वेतन और सम्मान देने के लिए यह आंदोलन अनिवार्य है। यदि शासन हमारी मांगों को जल्द पूरा नहीं करता, तो यह आंदोलन एक ऐतिहासिक रूप ले सकता है।