छत्तीसगढ़

सुप्रीम कोर्ट में अदाणी एंटरप्राइजेज के छत्तीसगढ़ कोल ब्लॉक विवाद पर सुनवाई: जानें क्या है पूरा मामला?

अदाणी एंटरप्राइजेज और छत्तीसगढ़ कोल ब्लॉक विवाद का संपूर्ण विवरण

अदाणी एंटरप्राइजेज का छत्तीसगढ़ कोल ब्लॉक विवाद एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, जो अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। 2017 में इस कोल ब्लॉक की नीलामी में अदाणी एंटरप्राइजेज के नेतृत्व वाले एक समूह ने बोली लगाई और इसे हासिल किया। हालांकि, इसके बाद जो हुआ, उसने पूरी कहानी को नया मोड़ दे दिया।

क्या है विवाद की असल जड़?

गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन लिमिटेड (GSECL) और कोल ब्लॉक आवंटन

गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन लिमिटेड (GSECL) ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में कोयले की खान के लिए केंद्र सरकार से एक कोल ब्लॉक आवंटित करवाया था। इसके लिए एक निविदा प्रक्रिया शुरू की गई, जिसमें अदाणी एंटरप्राइजेज समूह ने जीत हासिल की।

बैंक गारंटी और कंडीशनल लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस

अदाणी समूह ने एक बैंक गारंटी के रूप में 50 करोड़ रुपये की राशि जमा की और इसके बाद 2018 में GSECL ने एक कंडीशनल लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस जारी किया। यहीं से असली मुद्दा शुरू होता है।

GSECL द्वारा कोल ब्लॉक की वापसी और विवाद की शुरुआत

एकतरफा फैसला और खर्च का सवाल

GSECL ने बाद में एकतरफा तरीके से कोल ब्लॉक को वापस लेने का फैसला किया। अदाणी समूह का दावा है कि उन्होंने इस परियोजना के लिए भारी मात्रा में खर्च कर दिया था, जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर, मानव संसाधन और प्रशासनिक खर्च शामिल थे।

क्या GSECL ने शर्तें तोड़ी?

अदाणी समूह का मानना है कि GSECL का यह कदम कंडीशनल लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस की शर्तों के खिलाफ है। उनका कहना है कि उन्होंने इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए पहले से ही कार्य शुरू कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंचा मामला

अदाणी एंटरप्राइजेज की मांग – आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया शुरू की जाए

अदाणी एंटरप्राइजेज ने मामले को सुलझाने के लिए आर्बिट्रेशन प्रक्रिया की मांग की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि इस विवाद को आर्बिट्रेशन में भेजा जाए, ताकि इसका निपटारा न्यायिक रूप से हो सके।

गुजरात हाई कोर्ट का फैसला और अदाणी का पक्ष

गुजरात हाई कोर्ट ने इस विवाद को आर्बिट्रेशन में भेजने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि कंडीशनल लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस अपने आप में आर्बिट्रेशन का कारण नहीं बन सकता, जब तक केंद्र सरकार की मंजूरी नहीं मिल जाती।

इस पूरे मामले में कई पहलू हैं, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या बड़ी परियोजनाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता से काम होता है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आता है और इसका आगे का क्या असर होगा।

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