यशवंत गंजीर@ कुरुद। छत्तीसगढ़ के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक अन्नपूर्णा धाम कोदोरास खारुननदी के तट पर विराजमान है जहां प्रतिवर्ष माघी पूर्णिमा पर भव्य मेले का आयोजन होता है। जिसकी लोकप्रियता और महत्ता समय के साथ बढ़ रही है। लोग दूर-दूर से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए यहां पहुंचते है और माँ अन्नपूर्णा की आशीर्वाद प्राप्त कर हर्षित मन से यहां से जाते है। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी आज यहां मेला का आयोजन हो रहा है।
जिला मुख्यालय धमतरी से 30 किमी व कुरुद विकासखंड के अंतिम छोर दुर्ग और बालोद जिले को विभाजित करने वाली पवित्र नदी खारुन के तट पर बसा गांव सिलौटी से लगा हुआ 01 किमी मैदान में माँ अन्नपूर्णा कोदोरास का पवित्र धाम है।जंहा पर हर वर्ष माँघी पूर्णिमा पर भव्य मेले का आयोजन होता है जो कि सन 1993 से श्रद्धालुओं और ग्रामीणों के परस्पर सहयोग से अपने भव्यता को प्राप्त कर रहा है।
कोदोरास के पीछे की क्या है कहानी और क्यो लगता है मेला:
छत्तीसगढ़ के हरएक तीर्थ स्थलों के पीछे कोई न कोई किवंदतियां या कहानी जरूर होती है। ऐसे ही कहानी अन्नपूर्णा धाम कोदोरास की भी है। जिनके बारे में कहा जाता है कि वर्षो पहले यह गांव प्राकृतिक प्रकोप सूखा और अकाल की चपेट में था। सिलौटी व आसपास गांव के बुजुर्ग लोग बताते है कि आज से लगभग सौ साल पूर्व जब गांव में अकाल पड़ा था तब यहां के लोग भूख से मर रहे थे खेती बंजर हो चुकी थी। तब लोग भूख और गरीबी से रोते बिलखते रहते थे कि अचानक एक दिन गांव के ही एक व्यक्ति दीनदयाल(काल्पनिक नाम) को माता अन्नपूर्णा ने दर्शन दिया और उन्हें सुखी और समृद्ध होने का आशीर्वाद के रूप अन्न का दान प्रदान किया। साथ ही उसे खूब मेहनत करने को कहा। माता के दर्शन देने के बाद इस गांव में अच्छी बारिश हुई तब किसान दीनदयाल ने परिवार संग मिलकर खेती किया और माता द्वारा आशीर्वाद प्राप्त बीज को बोया जो कोदो अनाज के रूप पहचान किया गया। दीनदयाल के मेहनत से जब फसल पूर्णतः तैयार हो गया तो वे फसल की अच्छी से कटाई, गुड़ाई की और भरपूर मात्रा में कोदो उपज को प्राप्त किया। किसान कोदो फसल की भंडारण किया जिनको रास कहा जाता है। कोदोरास को देखकर वह बहुत खुश हुआ और नापने के लिए एक लकड़ी का काठा लिया।
अन्नपूर्णा की हुई कृपा, कोदो के ढेर से बन गया कोदोरास:
इस बीच एक आश्चर्यजनक घटना उस समय घटित हुआ। किसान जब कोदो को काठा से नापने लगा नापते गया नापते तक गया लेकिन कोदो खत्म होता ही नही था। सुबह से शाम हो गया फिर भी अनाज का ढेर खत्म नही हुआ। किसान थक हारकर परेशान हो गया। एक तो पहले वे दाने-दाने को तरस रहा था और जब मिला तो इतना कि वह खत्म होने का नाम ही नही लेता। किसान को गुस्सा आया और प्रकृति को कोसने लगा कि मुझ गरीब किसान से यह कैसा परीक्षा लिया जा रहा है। तब किसान गुस्से से कोदो को वही खलिहान में छोड़कर और काठा को लात मारकर घर वापस आ गया ।अगले दिन जो कोदो अनाज का ढेर था वह उसी स्थान पर पत्थर बन गया था और लात मारने से काठा भी लगभग वहां से 500 मीटर दूर छिटक कर पत्थर बन गया था। तब उसी रात किसान दीनदयाल को माता अन्नपूर्णा ने स्वपन में दर्शन दिया और कहा कि मैंने तुम्हें सदा सुखी और समृद्ध रहने का आशीर्वाद दिया था लेकिन तुमने मेरा तिरिस्कार कर मुझे वहीं छोड़ आ गए। तब किसान को गलती का एहसास हुआ और गांव वाले को माता की महिमा के बारे में बताया।
बाबा गोरखनाथ के प्रयास से बना मंदिर, अब लगता है भव्य मेला:
इस तरह से यह बात गांव में फैली गांव के लोग बड़ी श्रद्धा से पत्थर बने कोदो के ढेर को माँ कोदोरास और काठा को काठा देव् के नाम से पूजने लगे। समय बीतता गया और गांव में धीरे- धीरे खुशहाली आनी शुरू। लेकिन एक कहावत है कि “दुःख में सुमिरन सब कोई करे सुख में करे न कोय” कुछ ऐसा ही कहावत यहां भी देखने को मिला गांव वाले माता को धीरे- धीरे फिर भूलने लगे। फिर गांव में प्राकृतिक प्रकोप बाढ़ जैसे स्थिति निर्मित हुई गांव की फसल बर्बाद हो गई। तब सन 1990-91 में गोरखपुर से ब्रम्हचारी बाबा आया जिन्हें गोरखनाथ बाबा के नाम से जानते है। इन्हें जब इस स्थान की महिमा का पता चला तो ये यंही सिलौटी में कोदो रास को पूजा करते निवास करने लगे और उन्होंने यंहा पर मंदिर बनाने को सोची और लोगो से चंदा और सहयोग लेकर एक भव्य मंदिर बनवाकर श्री हरि विष्णु और माँ अन्नपूर्णा लक्ष्मीजी का प्राण प्रतिष्ठा करवाये। फिर से गांव में खुशहाली आई जिसकी मान्यता को सिलौटी गांव ही नही सैकड़ो किलोमीटर दूर के लोग भी मानने लगे। और प्रतिवर्ष यहाँ माघी पूर्णिमा पर मेला लगने लगा धीरे से यंहा पर भगवान जगन्नाथ ,हनुमान जी , शनिदेव , माता शीतला, कर्मा माता श्री कृष्ण भगवान ,भगवान राम, बूढ़ा देव् और दुर्गा माता की मंदिर का निर्माण विभिन्न समाजो व दान दाताओं के सहयोग से किया गया। इस तरह से कोदो रास की ख्याति बहुत दूर दूर तक फैल गयी । मनोकामना पूर्ति व मेले का आनंद लेने श्रद्धालुजन पहुंचते है: तब से लेकर आज तक यहां प्रतिवर्ष माघी पूर्णिमा पर भव्य मेले का आयोजन होता आ रहा है। इस दिन श्रदालु अलसुबह उठकर खारून नदी के जल से स्नान कर भगवान के दर्शन करते है। अपनी मनोकामना पूर्ण करवाने प्रतिवर्ष चैत्र व क्वांर नवरात्र पर मनोकामना ज्योति भी भक्तगण यहां जलाते है। इतना ही नही घर परिवार व गांव में कोई भी शुभकार्य करने से पहले भगवान अन्नपूर्णा को निमंत्रण दे आशीर्वाद जरूर लेते है। दूर-दूर से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है और सच्चे मन से माँ से आशीष व मेले का आनंद लेकर जाते है।
सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल रहेगा तैनात:स्थानीय मन्दिर समिति द्वारा पूरी तैयारी कर ली गई है। आज भक्त अपने निजी साधनों से धाम पहुंचेंगे। सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए महिला व पुरूष पुलिस कर्मियों की भी तैनाती कर दी गई। कोरोना के मद्देनजर भक्तों को मास्क लगाकर आने की अपील की गई है। मेले में रात्रिकालीन मनोरंजन हेतु भर्रीटोला बालोद का छत्तीसगढ़ी नाचा कार्यक्रम रखा गया है।