
रायपुर। CG Assembly Session 2025: छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सिकलसेल संस्थान में मरीजों के इलाज की सुविधाओं की कमी का मामला सामने आया। भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सिकलसेल बीमारी से 25 लाख लोग प्रभावित हैं, लेकिन इलाज की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है।
सिकलसेल संस्थान में इलाज की सुविधाओं की कमी
अजय चंद्राकर ने कहा, “सिकलसेल से पीड़ित मरीज अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं। राज्य में केवल रायपुर में एक सिकलसेल संस्थान है, लेकिन यहां पर्याप्त विशेषज्ञ नहीं हैं और कोई रिसर्च भी नहीं हो रहा। इसके अलावा, संस्थान का खुद का भवन भी नहीं है। मरीज इलाज के लिए दर-दर भटक रहे हैं।”
इस मुद्दे पर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने जवाब दिया कि राज्य में सिकलसेल के लिए एकमात्र संस्थान है और राज्य के सरकारी चिकित्सालयों में सिकलसेल प्रबंधन सेल की शुरुआत की गई है। उन्होंने यह भी बताया कि इस संबंध में वैज्ञानिकों ने 19 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं और चिकित्सकों की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। साथ ही, सिकलसेल सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा भी शुरू की जा रही है।
चंद्राकर ने भूपेश सरकार के कार्यकाल पर उठाए सवाल
भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने आगे कहा, “जब मैं स्वास्थ्य मंत्री था, तब सिकलसेल संस्थान की शुरुआत की गई थी, लेकिन भूपेश सरकार ने केवल भवन के लिए नारियल फोड़ने का काम किया। क्या सरकार बताएगी कि संस्थान में कितने डॉक्टर और विशेषज्ञ हैं?”
इस पर स्वास्थ्य मंत्री ने जवाब दिया, “प्रदेश में सिकलसेल के लिए हमने काफी काम किया है। 23 जून 2023 को भूपेश सरकार ने सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस के लिए भूमिपूजन किया था। हमारी सरकार आने के बाद से अब तक 11 बैठकें हो चुकी हैं, जिसमें 180 सेटअप में से 28 लोग कार्यरत हैं, जिनमें 4 विशेषज्ञ डॉक्टर भी शामिल हैं। जल्द ही डॉक्टरों की भर्ती की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।”
मशीनों और मानव संसाधन की स्थिति
अजय चंद्राकर ने पूछा, “सिकलसेल संस्थान में कितनी मशीनें उपलब्ध हैं और मानव संसाधन की क्या स्थिति है?”
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि संस्थान में 4 उन्नत मशीनें उपलब्ध हैं और प्रतिदिन 60 मरीजों की जांच की जा रही है। इसके लिए नौ तकनीशियन काम कर रहे हैं, जो मशीनों को ऑपरेट करते हैं।
संस्थान से जुड़ी आर्थिक अनियमितताओं पर सवाल
अजय चंद्राकर ने यह भी पूछा कि सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस बनाने के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट और शोध की अनुमति कब तक मिल पाएगी। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि जिस बंगले में मंत्री रहते थे, उस बंगले की जमीन को सिकलसेल संस्थान के लिए क्यों नहीं दिया गया और क्या वहां किसी प्रकार की आर्थिक अनियमितताएं पाई गई हैं?
स्वास्थ्य मंत्री ने इस पर जवाब दिया, “बंगले के पास करीब दो एकड़ जमीन थी, लेकिन किसी भी तरह की आर्थिक अनियमितता की जानकारी नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तक किसी भी स्वास्थ्य मंत्री ने सिकलसेल संस्थान को मजबूत करने के लिए कदम नहीं उठाया। यह मेरी प्राथमिकता है और जो भी अनियमितता के आरोप लगाए गए हैं, उनका परीक्षण किया जाएगा और जरूरत पड़ी तो जांच भी कराई जाएगी।”
यह मुद्दा राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि सिकलसेल जैसी गंभीर बीमारी से लाखों लोग प्रभावित हैं। इस पर सटीक और त्वरित समाधान की आवश्यकता है, ताकि मरीजों को बेहतर उपचार मिल सके।