रायपुर, 28 जनवरी 2025। भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव में चायवाले के बाद अब एक और आम व्यक्ति को टिकट दिया है। अकलतरा के वार्ड नंबर 11 से भाजपा ने संतोषी कैवर्त्य, एक गुपचुप बेचने वाली महिला, को पार्षद प्रत्याशी बनाया है। इससे पहले रायगढ़ से महापौर पद के लिए चायवाले जीववर्धन चौहान को टिकट मिल चुका था। भाजपा का यह कदम पार्टी की विचारधारा को भी दर्शाता है, जिसमें वह आम कार्यकर्ताओं को भी सम्मान देती है और यह संदेश देती है कि पार्टी में साधारण कार्यकर्ता भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने शीर्ष नेता।
भाजपा की रणनीति: साधारण कार्यकर्ताओं को टिकट
भा.ज.पा. ने इस बार नगरीय निकाय चुनाव में अकलतरा से संतोषी कैवर्त्य को पार्षद पद के लिए अपना प्रत्याशी घोषित किया है। संतोषी, जो सड़क किनारे गुपचुप का ठेला लगाती हैं, इस टिकट के जरिए भाजपा ने एक और साधारण कार्यकर्ता को चुनावी मैदान में उतारा है। इससे पहले, रायगढ़ से चायवाले जीववर्धन चौहान को महापौर पद के लिए टिकट दिया गया था। भाजपा की यह रणनीति साधारण कार्यकर्ताओं को सम्मान देने और उन्हें पार्टी के मुख्य धारा में लाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
चायवाले को महापौर और गुपचुप वाली को पार्षद पद का टिकट
इससे पहले रायगढ़ में चाय बेचने वाले जीववर्धन चौहान को भाजपा ने महापौर पद का प्रत्याशी घोषित किया। चौहान की चाय की दुकान अब एक राजनीतिक केंद्र बन चुकी है, जहां कार्यकर्ता और वरिष्ठ नेता अक्सर आते हैं। चौहान की राजनीति में शुरुआत 1996 में भाजपा से जुड़ने के साथ हुई थी, और अब वे पार्टी के प्रमुख पदों पर भी कार्य कर चुके हैं।
जीववर्धन चौहान का दावा है कि वे लंबे समय से पार्टी और संघ से जुड़े हैं और महापौर का टिकट मिलने पर उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया है। चौहान का नाम महापौर के उम्मीदवार के रूप में अचानक सामने आ गया, जिससे उनके परिवार और समर्थकों में उत्साह का माहौल है।
भाजपा का यह कदम क्या संकेत देता है?
भा.ज.पा. ने इस चुनाव में साधारण कार्यकर्ताओं को टिकट देकर यह साबित किया है कि पार्टी में नेतृत्व का अवसर केवल शीर्ष नेताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि साधारण कार्यकर्ता भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। यह चुनावी रणनीति पार्टी के विस्तार और जनमानस से जुड़ने का भी प्रयास है, जिसमें वे अपने कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करते हैं।
भाजपा के लिए यह एक बड़ा चुनावी संदेश है कि वे केवल बड़े नेताओं को ही नहीं, बल्कि साधारण कार्यकर्ताओं को भी महत्व देते हैं। अब देखना यह है कि यह रणनीति चुनाव परिणामों पर क्या असर डालती है।