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हाल ही में, छत्तीसगढ़ में आईएएस अधिकारी रानू साहू को एक केंद्रीय कोष में करोड़ों के घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया गया है। यह गिरफ्तारी उन आरोपों के बाद हुई है, जिनमें कहा गया है कि रानू साहू और पूर्व सहायक आयुक्त माया वेरियर ने मिलकर जिला खनिज कोष (डीएमएफ) के फंड का दुरुपयोग किया। यह मामला न केवल एक अधिकारी की जिम्मेदारी को सवाल में लाता है, बल्कि सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के एक बड़े नेटवर्क को उजागर करता है।
क्या है डीएमएफ फंड?
डीएमएफ फंड, जिसे जिला खनिज विकास फंड के नाम से भी जाना जाता है, का उद्देश्य खनन क्षेत्रों के विकास के लिए धन उपलब्ध कराना है। छत्तीसगढ़ में इस फंड के अंतर्गत लगभग ₹1,000 करोड़ की राशि कोरबा जिले में व्यय की जाने वाली थी, लेकिन इसमें से बड़ी मात्रा में धनराशि कथित रूप से हड़प ली गई। यह फंड, जिसे स्थानीय विकास के लिए आवंटित किया गया था, अब भ्रष्टाचार के आरोपों की चपेट में आ चुका है।
जांच की शुरुआत और गिरफ्तारी
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस मामले में जांच शुरू की है, जिसमें पहले तीन प्राथमिकी दर्ज की गई थीं। इन प्राथमिकी में यह आरोप लगाया गया था कि सरकारी अधिकारियों ने ठेकेदारों और राजनीतिक कार्यकारियों के साथ मिलकर डीएमएफ के फंड को हड़पने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लिया। इस घोटाले में माया वेरियर की गिरफ्तारी से मामले की गंभीरता और बढ़ गई है, क्योंकि वे भी इस मामले में मुख्य आरोपी माने जा रहे हैं।
अधिकारियों की संलिप्तता
ईडी की जांच से यह पता चला है कि रानू साहू ने मई 2021 से जून 2022 तक कोरबा जिले के जिला कलेक्टर के रूप में कार्य किया, जबकि माया वेरियर ने अगस्त 2021 से मार्च 2023 तक उसी जिले में सहायक आयुक्त के रूप में कार्य किया। इस दौरान, एक “संगठित प्रणाली” का पता चला, जिसमें ठेकेदारों से अवैध कमीशन वसूल किए जा रहे थे।
किकबैक की व्यवस्था
ईडी के अनुसार, ठेकेदारों ने सरकारी अधिकारियों को 25-40% की किकबैक राशि दी। यह राशि फर्जी प्रविष्टियों के माध्यम से उत्पन्न की गई थी। यह तथ्य दर्शाता है कि घोटाले की जड़ें कितनी गहरी हैं, और इसके पीछे एक बड़े नेटवर्क का काम है।
भविष्य की गिरफ्तारी की संभावना
ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों ने संकेत दिया है कि जांच के दौरान और अधिक गिरफ्तारियों की संभावना है, क्योंकि नए सबूत उच्च रैंकिंग के सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता को उजागर कर रहे हैं। पूर्व मंत्रियों और राजनीतिक हस्तियों के नाम भी इस जांच में सामने आ सकते हैं, जो दर्शाता है कि मामला कितना जटिल और व्यापक है।
निष्कर्ष
इस मामले ने सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार के एक नए पहलू को उजागर किया है। हम सभी को यह सोचने की आवश्यकता है कि ऐसे मामलों में जांच और कार्रवाई कैसे की जाती है। यह मामला केवल एक अधिकारी का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।