झीरम घाटी हमला: 12 साल बाद भी न्याय अधूरा, भाजपा विधायक अजय चंद्राकर बोले – “कांग्रेस को सिर्फ राजनीति करनी है”

Jhirm Ghati Naxal Attack: झीरम घाटी हत्याकांड को आज 12 साल हो गए। यह सिर्फ एक नक्सली हमला नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की राजनीति का ऐसा जख्म है जो अब तक भर नहीं पाया है। इस बरसी पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और तेज-तर्रार विधायक अजय चंद्राकर ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला और इसे “राजनीति की नौटंकी” करार दिया।
“भूपेश बघेल को जांच से नहीं, राजनीति से मतलब है” – अजय चंद्राकर
सुकमा जिले की झीरम घाटी में 25 मई 2013 को हुए नक्सली हमले में कांग्रेस के 27 नेता मारे गए थे। इस भयानक झीरम घाटी नक्सली हमला की जांच आज तक अधूरी है। इसी को लेकर विधायक अजय चंद्राकर ने कांग्रेस और खासकर भूपेश बघेल पर तीखा निशाना साधा।
उन्होंने कहा:
“भूपेश बघेल झीरम-झीरम तो बोलते हैं, पर उन्हें ना जांच से मतलब है, ना न्याय से। कांग्रेस इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति करना चाहती है।”
चंद्राकर ने यह भी कहा कि मारे गए नेताओं को प्राकृतिक न्याय मिल रहा है, क्योंकि नक्सल उन्मूलन अभियान तेजी से आगे बढ़ रहा है।
कांग्रेस की ‘घर वापसी’ पर भी किया कटाक्ष
भाजपा विधायक यहीं नहीं रुके। उन्होंने कांग्रेस में चल रही “घर वापसी” जैसी राजनीतिक गतिविधियों पर भी तंज कसते हुए कहा:
“कभी कांग्रेस में ऑपरेशन लोनवर्राटू चलता है, कभी रुक जाता है। जैसे नक्सलियों के लिए घर वापसी होती है, वैसे ही कांग्रेस का भी ‘आओ वापस आओ’ ड्रामा है।”
अजय चंद्राकर ने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी की हालत ये है कि “यहां मल्लिकार्जुन खड़गे का वजूद नहीं है, तो बाकी नेताओं को छोड़ ही दीजिए।”
“बस्तर की सड़कों पर स्केटिंग करें कांग्रेस वाले” – चंद्राकर का तंज
छत्तीसगढ़ कांग्रेस जल्द ही ‘न्याय पदयात्रा’ की शुरुआत करने जा रही है। इसे लेकर भी अजय चंद्राकर ने चुटकी ली और कहा:
“अब बस्तर की सड़कें अच्छी बन गई हैं, कांग्रेस पदयात्रा की जगह स्केटिंग करे। वैसे भी चलने से थक जाएंगे।”
उन्होंने कांग्रेस की पदयात्रा को सिर्फ राजनीतिक स्टंट बताया और कहा कि इससे जनता का कोई भला नहीं होने वाला।
12 साल बाद भी न्याय अधूरा, सियासत जारी
CG Jhirm Attack Investigation: झीरम घाटी की वह काली शाम आज भी छत्तीसगढ़ की राजनीति पर छाई हुई है। 12 साल बीत गए, मगर ना कोई साफ़ रिपोर्ट आई, ना दोषियों को सजा मिली। हर साल इस घटना की बरसी पर राजनीतिक बयानबाजी ज़रूर लौट आती है।
लेकिन सवाल आज भी वहीं है — झीरम घाटी के शहीद नेताओं को कब मिलेगा न्याय?
और क्या राजनीतिक दल कभी इस त्रासदी से ऊपर उठकर इसकी निष्पक्ष जांच की मांग करेंगे?