CG Major Festivals and Month: छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार और महीना, जानिए क्यों हैं छत्तीसगढ़ के त्यौहार इतने खास

CG Major Festivals and Month: छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश जो सिर्फ धान का कटोरा नहीं, बल्कि लोक परंपराओं, संस्कृति और आस्था का विशाल पिटारा है। यहाँ के त्यौहार किसी कैलेंडर की तारीख भर नहीं होते, ये तो जन-जीवन की धड़कन हैं। हर मौसम, हर महीने और हर मौके पर यहाँ कुछ ना कुछ खास होता है – खेतों की हरियाली हो या गांव की गलियों में गूंजते लोकगीत। आइए करते हैं एक चक्कर छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहारों का, और जानते हैं कि कब और कैसे बनती है यहां की जिंदगी उत्सवमय।
Hareli Festival: हरेली: खेती-किसानी की खुशियों का पहला पैगाम

छत्तीसगढ़ के तीज-त्यौहारों की शुरुआत सावन अमावस्या को हरेली से होती है। यह त्योहार किसानों और खेती से जुड़ा होता है। हल, फावड़ा, गैंती जैसे औजारों की पूजा होती है। बच्चे गांवों में बाँस की गेड़ी चढ़ते हैं और गेड़ी दौड़ होती है। घरों में गुड़ का चीला बनता है, और दरवाजों पर नीम की पत्तियां लगाई जाती हैं ताकि बीमारी और बुरी नजर दूर रहें।
क्यों खास: यह धरती माता और प्रकृति के प्रति आभार जताने वाला पर्व है।
Jethouni Tihar: जेठौनी तिहार- तुलसी विवाह: तुलसी चौरा में गन्ने का मंडप और विष्णु जी संग विवाह

तुलसी विवाह छत्तीसगढ़ में कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और इसी के साथ मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
इस दिन घर-घर में बने तुलसी चौरा को सजाया जाता है। खास बात यह है कि गन्ने से एक मंडप (शादी का मंडप) बनाया जाता है, जिसमें तुलसी माता को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और भगवान शालिग्राम (विष्णु जी) से उनका विवाह कराया जाता है। पूजा में महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं, भोग चढ़ाया जाता है और तुलसी-शालिग्राम का फेरे दिलवाए जाते हैं। यह विवाह प्रतीक है धरती और सृष्टिकर्ता के मिलन का।
Teej Festival: तीजा: बहनों का व्रत, अपार स्नेह की सौगात

छत्तीसगढ़ में तीजा सिर्फ एक व्रत नहीं, बहनों के प्यार और त्याग का प्रतीक है। भादो महीने में आने वाला यह पर्व महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। कई जगहों पर unmarried लड़कियां भी मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना से तीजा करती हैं।
गांवों में सामूहिक तीजा गीत गाए जाते हैं, महिलाएं पारंपरिक लुगरा पहनकर मंदिरों में जाती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।
खास बात: तीजा छत्तीसगढ़ की उन परंपराओं में से है जहां स्त्री शक्ति, आस्था और परिवार के बीच का रिश्ता सबसे खूबसूरती से नजर आता है।
Pora (Pola) Festival: पोरा (पोला): मिट्टी से बने बैल की पूजा

पोरा या पोला भादो महीने की अमावस्या को मनाया जाता है और यह खासकर किसानों के लिए सबसे बड़ा पर्व होता है। इस दिन किसान अपने बैलों को अच्छे से नहलाते हैं, उन्हें सजाते हैं, सींगों पर तेल लगाते हैं और फिर पूरे सम्मान से उनकी पूजा करते हैं। क्योंकि यही बैल उनकी खेती के सच्चे साथी होते हैं।
गांवों में पोरा दौड़ का आयोजन होता है, जिसमें सज-धजकर बैल दौड़ते हैं। बच्चे मिट्टी से बने बैल, हाथी, घोड़े और बर्तन लेकर पूजा करते हैं। यह त्योहार बच्चों के लिए भी किसी मेले से कम नहीं होता।
खास बात: पोरा एक ऐसा त्योहार है जो इंसान और जानवर के रिश्ते को सम्मान और स्नेह से जोड़ता है – कुछ ऐसा जो शायद आज के शहरी जीवन में कम होता जा रहा है।
Chherchhera Festival: छेरछेरा: जब खेत से घर तक आती है खुशहाली

पौष पूर्णिमा को मनाया जाता है छेरछेरा – ये त्योहार फसल कटाई के बाद आता है। बच्चे और युवा टोली बनाकर गांव-गांव जाते हैं, गीत गाते हैं और अनाज मांगते हैं। घर वाले उन्हें चावल, गुड़, दाल और पैसा देते हैं। ये पर्व समाज में दान, सहयोग और उत्सव की भावना को बढ़ाता है।
क्यों खास: फसल की खुशियों को मिल-बांटकर मनाने का त्योहार।
Fagun Festival: फागुन तिहार: होली की मस्ती और रंगों की बौछार

छत्तीसगढ़ में होली सिर्फ रंगों का नहीं, लोकगीतों और नृत्य का भी त्योहार है। आदिवासी इलाकों में होली की शुरुआत बैगा अनुष्ठान से होती है, फिर महुआ की मस्ती के साथ ढोल-मांदर बजते हैं और फाग गूंजते हैं। पूरा गांव एक रंग में रंग जाता है – मिलन, मस्ती और मेलजोल का रंग।
क्यों खास: यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
Akti Tihar: अक्ति तिहार (अक्षय तृतीया): खेती-किसानी, शादी-ब्याह और बच्चों की मासूम परंपरा का दिन

अक्ति तिहार, जिसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, छत्तीसगढ़ का एक पारंपरिक पर्व है जो वैशाख माह की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। यह दिन खासतौर पर किसानों के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से खेती-बाड़ी की प्रतीकात्मक शुरुआत होती है—किसान अपने बीज लेकर ठाकुर देवता की पूजा करते हैं और खेतों में बुआई का सांकेतिक कार्य करते हैं। यह दिन विवाह के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है, बिना पंडित या मुहूर्त के बड़ी संख्या में शादियाँ होती हैं। अक्ति तिहार की एक और प्यारी परंपरा है छोटे बच्चों द्वारा गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाना—बच्चे खुद ही मंडप सजाते हैं, बारात निकालते हैं और खेल-खेल में संस्कृति से जुड़ जाते हैं। यह त्योहार छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़ी सादगी, सामाजिक एकता और परंपराओं की निरंतरता का प्रतीक है।
Bastar Dussehra: बस्तर दशहरा: भारत का सबसे लंबा चलने वाला उत्सव

बस्तर का दशहरा यूं तो नाम दशहरे जैसा है, लेकिन ये रावण वध से नहीं जुड़ा है। यह देवी दंतेश्वरी की आराधना और जनजातीय परंपराओं का महाउत्सव है, जो पूरे 75 दिन तक चलता है। इस दौरान रथयात्रा, मड़ई, जनजातीय नृत्य और देवी की जगर होती है।
क्यों खास: देश का सबसे अनोखा दशहरा, जहां धर्म, परंपरा और संस्कृति का संगम होता है।
लोक नृत्य और पंडवानी: हर उत्सव की जान: Folk Dance and Pandavani

छत्तीसगढ़ के किसी भी त्यौहार की बात हो, लोकनृत्य और लोकगायन के बिना कहानी अधूरी है।
- पंडवानी: महाभारत की कहानियां, गीत और अभिनय के माध्यम से सुनाई जाती हैं। तीजन बाई ने इसे देश-विदेश में मशहूर किया।
- पंथी नृत्य: सतनामी समाज का यह नृत्य माघ पूर्णिमा पर होता है।
- राउत नाच: दीपावली के समय यादव समाज द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
- सुआ और करमा नृत्य: ये त्योहारों में गांव की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहार और उनके महीने: Major festivals of Chhattisgarh and their months
त्यौहार | माह | मुख्य बातें |
---|---|---|
हरेली | सावन (जुलाई–अगस्त) | खेती-किसानी का पर्व, कृषि औजारों की पूजा, गेड़ी चढ़ना, नीम पत्तियाँ घर पर लगाना |
तीजा | भादो (अगस्त–सितंबर) | बहनों का व्रत, भाई की लंबी उम्र की कामना, पारंपरिक गीत और पूजा |
पोरा | भादो (अगस्त–सितंबर) | बैलों की पूजा, बच्चों द्वारा मिट्टी के बैल बनाना, गाँव में शोभायात्रा |
छेरछेरा | पौष पूर्णिमा (दिसंबर–जनवरी) | फसल कटाई के बाद दान, लोकगीत गाना, घर-घर अनाज माँगना |
होली | फागुन (फरवरी–मार्च) | रंग-गुलाल, फाग गीत, आदिवासी नृत्य, ढोल-मांदर |
बस्तर दशहरा | आश्विन (सितंबर–अक्टूबर) | 75 दिन तक चलने वाला अनूठा पर्व, देवी दंतेश्वरी की पूजा, रथयात्रा, जनजातीय संस्कृति |
पंथी नृत्य | माघ पूर्णिमा (जनवरी–फरवरी) | सतनामी समाज का पारंपरिक नृत्य, गुरु घासीदास की जयन्ती पर विशेष आयोजन |
राउत नाच | कार्तिक (दीपावली के आसपास) | यादव समुदाय द्वारा किया जाने वाला नृत्य, दीपावली के अगले दिन से शुरू |
मड़ई उत्सव | दिसंबर–मार्च | जनजातीय परंपरा, देवी-देवताओं की झांकी, लोकगीत और पूजा |
अक्ति तिहार | वैशाख (अप्रैल–मई) | कृषि की शुरुआत, बीज बुआई, गुड्डा-गुड़िया विवाह, सामूहिक विवाह |
जेठौनी तिहार | कार्तिक शुक्ल एकादशी (अक्टूबर–नवंबर) | तुलसी माता का गन्ने के मंडप में विवाह, शालिग्राम से शादी, पारंपरिक गीत |
क्यों हैं छत्तीसगढ़ के त्यौहार इतने खास?
Festivals of Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के त्यौहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इस मिट्टी की संस्कृति, परंपरा और लोक जीवन का प्रतिबिंब हैं। हर महीने और हर मौसम के साथ जुड़ी ये पर्व-परंपराएं लोगों को प्रकृति, खेती, परिवार और समुदाय से जोड़ती हैं। चाहे वह हरेली की हरियाली हो, छेरछेरा का दान हो, या तुलसी विवाह की भक्ति—हर त्यौहार में जीवन की खुशबू और लोक भावना की गूंज सुनाई देती है। इन उत्सवों से जुड़ी नृत्य, गीत, खान-पान और मेल-जोल की संस्कृति छत्तीसगढ़ को एक जीवंत और रंगीन प्रदेश बनाती है। सच में, त्यौहार यहां सिर्फ तिथि नहीं होते, बल्कि एक पूरी जीवनशैली होते हैं।