रायपुर। नौ साल की दलित बच्ची के साथ हुए बलात्कार और हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला चर्चा का विषय बन गया है। अदालत ने कहा है कि “मृत शरीर के साथ बलात्कार भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।”
मामला क्या है?
यह घटना 2018 की है, जब नितिन यादव नामक व्यक्ति ने बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद नीलकंठ नामक व्यक्ति ने बच्ची के शव को छुपाने में नितिन की मदद की।
सितंबर 2023 में, ट्रायल कोर्ट ने नितिन यादव को बलात्कार और हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। वहीं, नीलकंठ को सबूत मिटाने के लिए सात साल की सजा दी गई। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने नीलकंठ को बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया क्योंकि अपराध के वक्त बच्ची मृत थी।
हाईकोर्ट का फैसला
बच्ची की मां ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और नीलकंठ के खिलाफ बलात्कार का आरोप फिर से लगाने की अपील की। लेकिन हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभू दत्ता गुरु की बेंच ने अपील खारिज कर दी।
फैसले में कोर्ट ने कहा:
- “मृत शरीर के साथ किया गया कृत्य नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से घृणित है, लेकिन IPC और पॉक्सो एक्ट के तहत इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता। कानून के तहत बलात्कार का आरोप तभी लग सकता है, जब पीड़िता जीवित हो।”
- “हर मृत शरीर सम्मान और मर्यादा का अधिकार रखता है, लेकिन वर्तमान कानून के तहत इस मामले में नीलकंठ को बलात्कार के आरोप में दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
मां की अपील खारिज
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए बच्ची की मां द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कानून को तथ्यों के आधार पर लागू करना होता है और इसमें संशोधन की जरूरत है।
समाज में आक्रोश
इस फैसले ने जनता और महिला संगठनों में आक्रोश पैदा कर दिया है। लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि कानून में बदलाव की आवश्यकता है ताकि मृत शरीर के साथ इस तरह के अपराध को कठोर दंड के दायरे में लाया जा सके।
आगे की राह
यह मामला कानून की सीमाओं को उजागर करता है और यह संदेश देता है कि भारत में ऐसे अपराधों को रोकने के लिए सख्त प्रावधान और नए कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।
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