पद्मश्री जागेश्वर यादव l Padmashree Jageshwar Yadav Biography: पिछड़ी जनजातियों के उत्थान के लिए रहे सदैव समर्पित…

पढ़िए उस शख्सियत के बारे में जिन्होंने पिछड़ी जनजातियों के उत्थान के लिए अपनी पूरी ज़िन्दगी समर्पित कर दी। जागेश्वर यादव, जो “बिरहोर के भाई” के नाम से प्रसिद्ध हैं, ने आदिवासी समुदायों की शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के लिए अथक प्रयास किए। उनकी समाज सेवा के कारण उन्हें हाल ही में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। Jageshwar Yadav का जीवन आदिवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जागेश्वर यादव का जन्म छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के भितघरा में हुआ था। 10 अक्टूबर 1955 को जन्मे श्री यादव ने वर्ष 1980 से बिरहोर जाति के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने गरीब बिरहोर परिवारों से मिलकर उनकी स्थिति की जानकारी ली और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए। बिरहोर समुदाय के लोग खानाबदोश जीवन जीते थे, जो जीवन निर्वाह के लिए वानर जैसे जानवरों का शिकार करते थे और जहां रात होती थी, वहीं अपना ठिकाना बना लेते थे। श्री यादव ने इन लोगों को स्थायी आवास दिलाने के लिए कृषि भूमि और कृषि उपकरण उपलब्ध कराने की कोशिश की। साथ ही, उन्होंने वन्य भूमि का पट्टा दिलवाने के लिए भी प्रयास किए। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप अब बिरहोर समुदाय के लोग खेती और मजदूरी करके अपनी आजीविका कमा रहे हैं और बेहतर जीवन जी रहे हैं। बचपन से ही उन्होंने बिरहोर और पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की कठिनाइयों और संघर्षों को देखा था। ये समुदाय घने जंगलों में निवास करते थे और शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और रोजगार के मामले में अत्यधिक पिछड़े हुए थे। जागेश्वर ने इन समुदायों के जीवन में बदलाव लाने का संकल्प लिया और अपनी पूरी ज़िंदगी उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए समर्पित कर दी।
समाज सेवा की दिशा में कदम
जागेश्वर यादव ने आदिवासियों के जीवन को बदलने के लिए सबसे पहले उनके बीच रहना शुरू किया। उन्होंने उनकी भाषा और संस्कृति को समझा और उनके विश्वास को जीतने के लिए शिक्षा के महत्व को समझाया। उन्होंने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया और इसके लिए खुद भी उनके साथ कार्य किया। उनका उद्देश्य केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने इन समुदायों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर भी प्रदान किए।

सामाजिक कार्यों में योगदान
जागेश्वर यादव ने जशपुर जिले में आदिवासी समाज (Tribal Society) के उत्थान के लिए एक आश्रम की स्थापना की। यहाँ पर उन्होंने आदिवासी बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रदान कीं। उन्होंने निरक्षरता उन्मूलन की दिशा में काम किया और आदिवासियों को जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए। उनके प्रयासों के कारण अब बिरहोर जनजाति के बच्चे भी स्कूल जाने लगे हैं, जो पहले कभी बाहरी लोगों से मिलते नहीं थे और पढ़ाई के लिए स्कूल जाने से घबराते थे।
पद्मश्री सम्मान
Jageshwar Yadav Padmashree Award: जागेश्वर यादव का अदम्य संघर्ष और समाज सेवा के प्रति समर्पण अंततः 2024 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हुआ। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें यह सम्मान दिल्ली में प्रदान किया। यह पुरस्कार उन्हें बिरहोर समाज (Birhor Society) के उत्थान के लिए उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए मिला है। जागेश्वर यादव जशपुर के पहले व्यक्ति हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान मिला है।
सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक
आर्थिक कठिनाइयों की वजह से यह सब आसान नहीं था. लेकिन उनका जुनून सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक रहा. जागेश्वर बताते हैं कि पहले बिरहोर जनजाति के बच्चे लोगों से मिलते जुलते नहीं थे. बाहरी लोगों को देखते ही भाग जाते थे. इतना ही नहीं जूतों के निशान देखकर भी छिप जाते थे. ऐसे में पढ़ाई के लिए स्कूल जाना तो बड़ी दूर की बात थी. लेकिन अब समय बदल गया है. जागेश्वर यादव के प्रयासों से अब इस जनजाति के बच्चे भी स्कूल जाते हैं.
आर्थिक कठिनाइयों का सामना
जागेश्वर यादव ने अपनी सेवा में कभी भी आर्थिक कठिनाइयों को आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने बिरहोर और कोरवा समुदायों के लिए काम करते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाने की कोशिश की। इसके साथ ही, उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में जल, जमीन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास किए।
कोरोना महामारी में योगदान
कोरोना महामारी के दौरान भी जागेश्वर यादव ने अपनी समाज सेवा की भावना को जारी रखा। उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोगों को वैक्सीनेशन के लिए जागरूक किया और सुनिश्चित किया कि वे इस महामारी से बचाव के उपायों को समझें और अपनाएं।
पारिवारिक जीवन और प्रेरणा
जागेश्वर यादव का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर किसी काम के प्रति सच्ची निष्ठा और समर्पण हो, तो किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है। उनका कहना है कि उन्होंने कभी भी किसी प्रकार की शारीरिक और मानसिक कठिनाई को अपना लक्ष्य प्राप्त करने से रोकने नहीं दिया। वे कहते हैं, “मेरा सपना है कि आदिवासी समाज को आत्मनिर्भर बनाया जाए और उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में समान अवसर प्राप्त हों।”
सम्मान और पुरस्कार
जागेश्वर यादव को 2015 में शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। उनके कार्यों को देखकर यह कहा जा सकता है कि वे आदिवासी कल्याण के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं। उनके जीवन का उद्देश्य आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करना और उन्हें मुख्यधारा में लाना रहा है।
जागेश्वर यादव का जीवन न केवल उनके समाज की प्रेरणा है, बल्कि यह समाज सेवा और समर्पण का प्रतीक भी है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी आदिवासी समुदाय के लिए समर्पित कर दी और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए अथक प्रयास किए। पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद उनकी पहचान और भी मजबूत हुई है, और उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
Also Read: छत्तीसगढ़ की बेटी हेमबती नाग प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2024 से सम्मानित