छत्तीसगढ़ के पर्सा कोयला खदान: वन कटाई और गांववालों का विरोध
विषय की पृष्ठभूमि
छत्तीसगढ़ के सुरगुजा जिले में स्थित पर्सा कोयला खदान को लेकर भारी विवाद चल रहा है, जिसका मुख्य कारण वन कटाई और स्थानीय गांववालों का विरोध है। इस संघर्ष ने विकास और पर्यावरण के संतुलन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर प्रशासन और पुलिस बल हैं, तो दूसरी ओर गांववाले अपने जंगलों और जमीन की सुरक्षा के लिए डटे हुए हैं।
पर्सा कोयला खदान: विवाद की जड़
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) को पर्सा कोयला खदान आवंटित की गई है, जिसका संचालन अदानी इंटरप्राइजेज द्वारा किया जा रहा है। लेकिन, इस खदान के लिए हो रही वन कटाई और उससे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान से गांववालों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
गांववालों का विरोध: पर्सा कोयला खदान और वन कटाई पर प्रतिक्रिया
गांववाले लंबे समय से पर्सा कोयला खदान के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह जंगल उनकी आजीविका, सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक संसाधनों का अहम हिस्सा है। उनके विरोध को नजरअंदाज करना न केवल पर्यावरणीय नुकसान को बढ़ावा देगा बल्कि स्थानीय समुदाय के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न लगाएगा।
मुख्य विरोध के कारण:
- जंगल की कटाई: पर्सा खदान के लिए करीब 95,000 पेड़ों की कटाई हो रही है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से एक बड़ी चुनौती है।
- स्थानीय निवासियों का विस्थापन: लगभग 700 लोगों को अपने घरों से हटाया जा रहा है, जिससे उनका जीवन पूरी तरह से बदल जाएगा।
- वन और वन्यजीवों पर प्रभाव: 840 हेक्टेयर घने जंगल के विनाश से वन्यजीवों और प्राकृतिक संसाधनों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
पुलिस और गांववालों के बीच झड़प: पर्सा कोयला खदान पर टकराव
हाल ही में, जब प्रशासन ने पर्सा कोयला खदान के लिए वन कटाई शुरू की, तब गांववालों ने इसका कड़ा विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप पुलिस और गांववालों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें कई लोग घायल हो गए।
झड़प के कारण:
- प्रशासन ने गांववालों को वन कटाई से रोकने की कोशिश की।
- गांववालों ने कुल्हाड़ी, डंडे और गुलेल जैसे हथियारों से विरोध किया।
पर्सा कोयला खदान और वन कटाई के कानूनी पहलू
केंद्र सरकार द्वारा पर्सा कोयला खदान के लिए वन कटाई की मंजूरी दी गई है। यह खदान कोल माइन डेवलपर-कम-ऑपरेटर (MDO) योजना के तहत अदानी ग्रुप द्वारा संचालित है।
सरकारी तर्क:
- राज्य के विकास के लिए आवश्यक: यह खदान छत्तीसगढ़ के आर्थिक विकास और बिजली आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
- ऊर्जा उत्पादन: यह खदान राज्य की बिजली आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होगी।
वन कटाई पर ग्राम सभाओं की मंजूरी: पर्सा कोयला खदान विवाद
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का दावा है कि पर्सा कोयला खदान के लिए दी गई मंजूरियां फर्जी दस्तावेज़ों पर आधारित हैं। गांववालों का कहना है कि ग्राम सभाओं ने इस परियोजना को कभी मंजूरी नहीं दी।
ग्राम सभाओं का पक्ष:
- हरिहरपुर, सलही और फतेहपुर गांवों की ग्राम सभाओं ने पर्सा कोयला खदान के लिए वन कटाई की मंजूरी नहीं दी।
- फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर प्रशासन ने मंजूरी का दिखावा किया है।
राजनैतिक प्रतिक्रियाएं: पर्सा कोयला खदान विवाद
इस विवाद ने राजनीतिक क्षेत्र में भी हलचल मचा दी है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वे आदिवासियों को उनके जंगलों से बेदखल कर रही है।
प्रमुख बयान:
- प्रियंका गांधी वाड्रा: “आदिवासियों को उनके जंगल से बेदखल करना भाजपा की नीति बन चुकी है।”
- अजय चंद्राकर (भाजपा प्रवक्ता): “यह जो हो रहा है, वह बहुत दुखद है।”
वन कटाई: समाधान और आगे की राह
यह विवाद केवल पर्सा कोयला खदान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि विकास के नाम पर किस हद तक हम अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार हैं।
संभावित समाधान:
- स्थानीय निवासियों की सहमति: किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले स्थानीय निवासियों की सहमति आवश्यक होनी चाहिए।
- विकास और पर्यावरण में संतुलन: विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है ताकि सभी पक्षों के हित सुरक्षित रहें।
- विस्थापन के बाद पुनर्वास: विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए ठोस और लाभकारी योजनाएं बनानी चाहिए।
निष्कर्ष
पर्सा कोयला खदान का विवाद हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का कितना नुकसान सही है। गांववालों का संघर्ष केवल उनके जंगल की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि हमारे समाज को यह याद दिलाने के लिए है कि जंगल केवल संसाधन नहीं, बल्कि हमारी धरोहर हैं, जिन्हें हमें सुरक्षित रखना होगा।