छत्तीसगढ़

नहीं रहे वरिष्ठ साहित्यकार त्रिभुवन पांडे, साहित्य का एक अध्याय समाप्त

धमतरी।भगवान विष्णु की भारत यात्रा, पंपापुर की कथा, ब्यूटी पार्लर में भालू  जैसे हास्य व्यंग, एकांकी संग्रह  जैसी कृतियों के रचयिता  त्रिभुवन पांडे  अब हम सब से  विदा हो गए।  5 मार्च  की रात  अपना भरा पूरा परिवार  छोड़ कर चले गए। इसी के साथ ही न सिर्फ धमतरी बल्कि छत्तीसगढ़ में साहित्य के एक अध्याय का अंत हो गया,  जिसकी कमी शायद कभी पूरी नहीं हो सकती है ।

व्यंगकार,कथाकार ,कहानीकार और वरिष्ठ साहित्यकार सोरिद नगर वार्ड धमतरी निवासी त्रिभुवन पांडे का जन्म 21 नवंबर 1938 को हुआ था और वही उन्होंने 5 मार्च 2021 को अंतिम सांसे ली। कॉलेज के हिंदी प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं देने के बाद वह साहित्य के क्षेत्र में लगातार बने हुए रहे। हिंदी प्राध्यापक के रूप में उनकी एक अलग पहचान थी। नारायण लाल परमार, सुरजीत नवदीप जैसे धमतरी के वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ उनकी जुगलबंदी जमती रही है।

साहित्यिक यात्रा

उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा का प्रारंभ शिक्षकीय कार्य के साथ महासमुंद से अपने साथी नारायण लाल परमार के साथ किया। शुरू के दिनों में त्रिभुवन पांडे, नारायण लाल परमार, सुरजीत नवदीप, भगवती लाल सेन, मुकीम भारती कविता पाठ के लिए बिना पारिश्रमिक  लिये ही मंचों पर जाया करते थे। उद्देश्य, कविता के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ना था।श्री पांडेय द्वारा रचित ‘पंपापुर की यात्रा, झूठ जैसा सच, महाकवि तुलसी एक जीवनी, पंछी मत हंसो (एकांकी संग्रह), सुनो सूत्रधार (नवगीत संग्रह), कागज की नांव, गांव वन पांछी जैसे अनेक व्यंग्य, गीत, नाटक और उपन्यास की संरचना उन्होंने की।छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन रायपुर 1988, स्मृति नारायणलाल परमार सम्मान-2005, निराला साहित्य मंडल चांपा सम्मान-2009, प्रखर सम्मान- 2011 सहित अनेक सम्मानों से सम्मानित त्रिभुवन पांडेय, सीधे, सरल, मिलनसार और भावुक थे। 

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