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छत्तीसगढ़ के इस गांव में आजादी के बाद से कभी नहीं हुआ चुनाव, लोकतंत्र की अनूठी परंपरा बनी मिसाल

बैकुण्ठपुर। छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले स्थित बैकुण्ठपुर जनपद पंचायत के अंतर्गत ग्राम पंचायत रनई ने एक बार फिर लोकतंत्र की अनूठी मिसाल पेश की है। यहां के ग्रामीणों ने बिना किसी चुनावी प्रक्रिया के, आपसी सहमति से निर्विरोध रूप से सरपंच और 15 पंचों का चयन किया। यह परंपरा आजादी के बाद से लगातार जारी है और आज भी कायम है।

निर्विरोध चुनाव की ऐतिहासिक परंपरा

रनई में आजादी के बाद से कभी भी चुनाव नहीं हुआ और यहां के लोग हर बार सौहार्द और सामूहिक सहमति से अपने पंचायत प्रतिनिधियों का चयन करते हैं। इस अनूठी परंपरा को बनाए रखने में स्थानीय जमींदार और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव योगेश शुक्ला का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी पहल पर गांव में निर्विरोध चुनाव की परंपरा लगातार जारी है, जिससे पंचायत का संचालन बिना किसी राजनीतिक तनाव के होता है।

बिना मतदान के चयन, उत्सव का माहौल

इस बार भी रनई के ग्रामीणों ने मतदान की आवश्यकता नहीं पड़ने दी और आपसी सहमति से सरपंच और 15 पंचों का चयन किया। जब निर्विरोध चुनाव की घोषणा हुई तो गांव में उत्सव जैसा माहौल बन गया। ग्रामीणों ने इसे आपसी भाईचारे और सामंजस्य की जीत माना और कहा कि यह परंपरा शांति और विकास का प्रतीक है।

अन्य पंचायतों के लिए प्रेरणादायक उदाहरण

रनई की यह लोकतांत्रिक परंपरा अन्य पंचायतों के लिए एक प्रेरणा बन गई है। यहां चुनावी प्रतिस्पर्धा की बजाय, सभी पदों पर आपसी सहमति से प्रतिनिधियों का चयन होता है, जिससे पंचायत में शांति बनी रहती है और विकास कार्यों में कोई राजनीतिक विवाद नहीं आता।

इनका हुआ निर्विरोध चयन

इस बार रनई में बबीता ठकुरिया को सरपंच, गीता शुक्ला को उप सरपंच चुना गया। 15 पंचों में यशोदा ठकुरिया, आशा दुबे, सुमित्रा पटेल, लता विश्वकर्मा, वेदमति साहू, ज्योति सिंह, हीरामनी पंडो, राधा साहू, सोनकुंवर कोल, शशि कोल, लीलाकोल, श्यामवती कोल, चंद्रमनी और सोनकुवंर कोल का चयन किया गया।

इस बार बबीता ठकुरिया को बनाया गया सरपंच

नामांकन नहीं हुए दाखिल

रनई में इस बार सरपंच और पंचों के लिए निर्धारित समय में किसी ने भी नामांकन दाखिल नहीं किया, क्योंकि सभी पदों पर पहले से ही आम सहमति बन चुकी थी। यह परंपरा हर बार इसी तरह निर्विरोध चयन पर आधारित रहती है, जिससे पंचायत में विवादों का कोई स्थान नहीं होता।

पूर्वजों से मिली इस परंपरा की धरोहर

रनई की इस परंपरा को बनाए रखने में यहां के पूर्वजों का अहम योगदान रहा है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि पंचायत का संचालन हमेशा शांतिपूर्ण तरीके से और बिना किसी चुनावी जद्दोजहद के हो। आज भी यह परंपरा पूरी मजबूती से कायम है और गांव में सामूहिक सहमति से नेतृत्व तय किया जाता है।

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