Naxalite leader Basavaraju: नक्सली नेता बसवराजू का शव बना विवाद की वजह, परिजनों का आरोप, ‘छत्तीसगढ़ सरकार ने शव देने से किया इंकार’.. हाईकोर्ट ने दिया निर्देश

रायपुर: Naxalite leader Basavaraju: अबूझमाड़ के गहरे जंगलों में बड़ा एनकाउंटर में 27 नक्सली ढेर हुए थे इसमें डेढ़ करोड़ का इनामी नक्सल लीडर राजू भी मारा गया, 2 जवान शहीद हुए थे मारे गए सबसे बड़े नक्सली नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू के शव को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। परिजनों का आरोप है कि छत्तीसगढ़ सरकार उनके बेटे का शव सौंपने से इंकार कर रही है, वहीं दूसरी ओर आंध्र प्रदेश पुलिस ने शव को गृह जिले में लाने से साफ मना कर दिया है। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा और अब कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है।
21 मई को मुठभेड़, 27 माओवादी ढेर
21 मई को बीजापुर और नारायणपुर की सीमा पर अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच जबरदस्त मुठभेड़ हुई थी। इस ऑपरेशन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू समेत 27 नक्सली मारे गए थे। कहा जा रहा है कि यह सुरक्षाबलों की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी है।
परिजनों की याचिका, कोर्ट का आदेश
बसवराजू और एक अन्य माओवादी सज्जा वेंकट नागेश्वर राव के परिजनों ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। याचिका में मांग की गई थी कि छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश सरकारों को शव सौंपने का आदेश दिया जाए ताकि वे अंतिम संस्कार कर सकें।
शनिवार को अदालत ने इन याचिकाओं का निपटारा करते हुए साफ किया कि याचिकाकर्ता शव लेने के लिए छत्तीसगढ़ के संबंधित पुलिस अधिकारियों से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।
पोस्टमार्टम के बाद मिलेंगे शव
कोर्ट में जब यह पूछा गया कि क्या पोस्टमार्टम हो चुका है, तो छत्तीसगढ़ सरकार के महाधिवक्ता ने बताया कि शनिवार तक सभी शवों का पोस्टमार्टम पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद शव परिजनों को सौंपे जाएंगे।
परिजनों का आरोप और प्रशासन की चिंता
वहीं दूसरी तरफ, बसवराजू के परिजनों का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार जानबूझकर शव नहीं दे रही। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन शव को छिपा रहा है और परिवार के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।
इधर, आंध्र प्रदेश पुलिस ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए शव को मृतक के गृह जिले में लाने से मना किया है। उनका कहना है कि इससे कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका है।
सवाल बहुत हैं, जवाब कौन देगा?
- क्या परिजनों को शव सौंपा जाएगा?
- क्या शव को कहीं और अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी जाएगी?
- क्या ये मामला एक बार फिर नक्सल और राजनीति के गठजोड़ का चेहरा उजागर कर रहा है?
इन तमाम सवालों के जवाब अब आने वाले कुछ दिनों में साफ होंगे। लेकिन इतना तय है कि बसवराजू की मौत के बाद भी नक्सलवाद की गूंज अब भी जंगलों से अदालतों तक गूंज रही है।
अबूझमाड़ का जंगल, घना और रहस्यमय। वहां ऐसी पहाड़ी है, जहां सूरज की रोशनी भी ठीक से नहीं पहुंच पाती। और यहीं, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले की किलेकोट पहाड़ी पर देश का मोस्ट वॉन्टेड नक्सली नेता बसव राजू उर्फ गगन्ना उर्फ केशव ढेर कर दिया गया। उसके साथ उसके कई गार्ड भी मारे गए।
ऑपरेशन हाई लेवल, इलाका हाई रिस्क
यह मुठभेड़ नारायणपुर से लगभग 150 किलोमीटर दूर बोटेर गांव के पास किलेकोट पहाड़ी पर हुई। यही वो जगह है जहां बसव राजू करीब 20 दिनों से अपने 40 गार्ड्स के साथ डेरा जमाए था। नीचे के गांव गुंडेकोट से रसद पहुंचाई जा रही थी। फोर्स को इनपुट मिला और चार जिलों की संयुक्त टीम ने इस ऑपरेशन की सटीक प्लानिंग की।
बांस और साल के जंगल, ड्रोन भी हो जाए फेल
किलेकोट का इलाका इतना घना और दुर्गम है कि ड्रोन से भी साफ तस्वीर लेना नामुमकिन है। दिन में भी यहां अंधेरे जैसा माहौल रहता है। यही वजह है कि अब तक इस इलाके में कोई बड़ा ऑपरेशन नहीं हुआ था। बसव राजू को लगा ये सबसे महफूज जगह है, लेकिन फोर्स ने उसकी गलतफहमी दूर कर दी।
फोर्स ने चारों ओर से किया पहाड़ को सील
पुलिस सूत्रों की मानें तो फोर्स को पहले ही जानकारी थी कि नक्सली इतनी जल्दी लोकेशन नहीं बदल पाएंगे। लिहाज़ा चारों जिलों की टुकड़ियों ने मिलकर पहाड़ को चारों तरफ से घेर लिया। जब आमना-सामना हुआ तो भारी गोलीबारी शुरू हो गई।
गोलियों से छलनी जंगल, मिले ब्रांडेड जूते और एनर्जी कैप्सूल
मुठभेड़ के बाद की तस्वीरें बता रही हैं कि वहां क्या कुछ हुआ होगा। बांस के जंगल में जगह-जगह गोलियों के निशान, जमीन पर पीतल के खोखे, एनर्जी कैप्सूल और ब्रांडेड जूते पड़े मिले। यह साबित करता है कि बसव राजू और उसके गार्ड्स वहां थे और उन्होंने पूरी तैयारी के साथ मोर्चा लिया था।
40 में से 26 नक्सली ढेर, कुछ भाग निकले
ग्रामीणों की मानें तो बसव राजू के साथ करीब 40 नक्सली थे। इनमें से 26 मारे गए और 10-12 किसी तरह जान बचाकर भाग निकले। इस ऑपरेशन में सबसे बड़ी बात यह रही कि कोई बड़ा फोर्स लॉस नहीं हुआ।
गुंडेकोट: एक ऐसा गांव जो अब भी नक्शे से दूर
जहां मुठभेड़ हुई उसके ठीक नीचे है गुंडेकोट गांव। यहां सिर्फ 15 परिवार रहते हैं। न सड़क, न स्कूल, न अस्पताल… सरकार की कोई योजना यहां नहीं पहुंची है। ग्रामीण बताते हैं कि गोलीबारी की आवाज सुनकर वह बोटेर गांव की तरफ भागे, क्योंकि उन्हें अपनी जान बचानी थी।
गांव वालों की ज़ुबानी
गांव के लोगों ने बताया, “हमने गोलियों की आवाजें सुनीं, हमें डर लगा, हमने अपने बच्चों को लेकर बोटेर गांव की तरफ भागना शुरू कर दिया। ऊपर की पहाड़ी पर कई दिनों से हलचल थी, लेकिन हमें नहीं पता था कि वहां कौन है।”
नक्सलियों का किला टूटा, पर माड़ का सवाल अब भी कायम
इस ऑपरेशन ने ये तो साबित कर दिया कि सरकार अब उन इलाकों तक भी पहुंच रही है जहां नक्सली दशकों से सुरक्षित बैठे थे। लेकिन सवाल ये है कि जो गांव अब भी नारायणपुर तक नहीं देख पाए हैं, क्या वहां कभी रोशनी, स्कूल और इलाज पहुंचेगा?