क्राइमछत्तीसगढ़

CG CHO Suicide: छत्तीसगढ़ में महिला स्वास्थ्य अधिकारी ने किया सुसाइड: फांसी लगाकर दी जान, विभागीय अफसरों पर लग रहा ये गंभीर आरोप

CG CHO suicide: छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ से एक बेहद तकलीफदेह खबर आई है। महिला सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (CHO) आरती यादव ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। कहा जा रहा है कि विभागीय अफसरों की प्रताड़ना, अनसुनी छुट्टी की मांग, और निजी तनाव ने मिलकर उनकी ज़िंदगी लील ली।

पति की मौत के बाद बिखर गई थीं आरती

आरती यादव अपने छोटे बच्चे के साथ दुर्ग जिले के धनोरा में रहती थीं। करीब एक महीने पहले उनके पति की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। उस गहरे सदमे के बाद भी उन्हें काम पर वापस बुला लिया गया। उन्होंने मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से छुट्टी की गुहार लगाई, लेकिन जवाब में क्या मिला? नोटिस, वेतन कटौती की चेतावनी और और ज्यादा काम का बोझ।

काम से दूर रहने पर दी गई सज़ा, मदद की बजाय मिली धमकी

आरती ने कुछ वक्त के लिए छुट्टी मांगी थी, ताकि खुद को और अपने बच्चे को संभाल सकें। लेकिन अफसरों ने इंसानियत दिखाने की बजाय नियमों की तलवार चला दी। कहा गया कि अगर समय पर ड्यूटी नहीं की तो वेतन काटा जाएगा और कार्रवाई की जाएगी। जब आरती ने कुछ दिनों तक स्वास्थ्य केंद्र नहीं ज्वाइन किया, तो उनके खिलाफ शिकायत भी दर्ज की गई।

ट्रांसफर की कोशिशें रहीं नाकाम

आरती यादव ने दुर्ग ट्रांसफर के लिए कई बार आवेदन दिया था ताकि वह अपने बच्चे के पास रह सकें। लेकिन अफसरों ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। उल्टा उन्हें फिर से दूर के जंगलपुर सीएचसी में ड्यूटी जॉइन करने को मजबूर किया गया। उस मानसिक स्थिति में इतना सफर और इतना तनाव उन्हें झकझोर गया।

सिस्टम की बेरुखी से टूटकर आरती ने, अपनाया मौत का रास्ता

पारिवारिक दुख, मानसिक तनाव और सिस्टम की बेरुखी से टूटकर आखिरकार आरती ने 15 मई को आत्महत्या कर ली। अपने ही घर में फांसी लगाकर उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। पीछे बचा एक मासूम बच्चा और वो सवाल, जो पूरे सिस्टम से पूछे जाने चाहिए।

कर्मचारियों ने बताया सिस्टम की नाकामी

घटना के बाद छत्तीसगढ़ एनएचएम कर्मचारी संघ और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी संघ ने बयान जारी किया। उनका कहना है,
“ये सिर्फ एक महिला कर्मचारी की मौत नहीं है, ये एक पूरे सिस्टम की हार है।”

संघ की मांग है कि:

  • संविदा कर्मचारियों के शोषण पर तत्काल रोक लगे।
  • महिला कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता दी जाए।
  • कार्यभार तय हो और अफसरों की जवाबदेही भी।

आखिरी सवाल: क्या इस बार कोई जिम्मेदार ठहराया जाएगा?

आरती यादव अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके सवाल ज़िंदा हैं। क्या विभागीय अफसरों से कोई पूछेगा कि उन्होंने एक मानसिक रूप से टूटी महिला को आखिर राहत क्यों नहीं दी? क्या कोई ये पूछेगा कि बार-बार की ट्रांसफर रिक्वेस्ट को ठुकराना, नोटिस भेजना और वेतन काटने की धमकी देना कितना अमान

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