ऋषि-मुनियों के तपोस्थली क्षेत्र कर्णेश्वर धाम में आज से पांच दिवसीय माघी पूर्णिमा मेला शुरू
नगरी। सिहावा-नगरी अंचल में महर्षि श्रृंगी ऋषि आश्रम के पास ऐतिहासिक कर्णेश्वर धाम में पांच दिवसीय माघी पूर्णिमा मेला 26 फरवरी से लगेगा। क्षेत्र के इस सबसे बड़े मेले में दूर दराज से संत और श्रद्धालु का आगमन होता है।
ऋषियों की तपोभूमि
यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही ऋषि बाहुल्य क्षेत्र व तप भूमि रहा है। पुराणों के अनुसार यह क्षेत्र आदि काल में श्रृंगी ऋषि, ब्रम्हर्षि लोमस, अगस्त्य, कर्क, सरभंग, मुचकुंद, अंगिरा ऋषि का यह तपोस्थली रही है। जिसके चलते सन्त महात्माओं का क्षेत्र में आना-जाना लगा रहता है व धार्मिक आयोजन होते रहते हैं।
सोमवंशीय राजाओ ने बनवाया था मन्दिर
कर्णेश्वर धाम में सोमवंशी राजाओं द्वारा निर्मित भगवान शिव एवं राम जानकी का मंदिर है। मंदिर में लगे सोलह पंक्तियों की आयताकार भीतर शिलालेख कांकेर के सोमवंशी राजा कर्णराज के शासनकाल में शक संवत 1114 में उत्कीर्ण कराया गया। शिलालेख संस्कृत भाषा में है। शिलालेख से पता चलता है कि महराज कर्णराज ने अपने वंश की कीर्ति को अमर बनाने के लिए कर्णेश्वर देवहद में छह मंदिरों का निर्माण करवाया था। पहला अपने निसंतान भाई कृष्णराज के नाम, दूसरा मंदिर प्रिय पत्नी भोपालादेवी के नाम निर्मित कराया था। भगवान शिव की आराधना कर उसकी प्रतिष्ठा की। कर्णराज द्वारा निर्मित मंदिरों में शिव के अलावा मर्यादा पुरुषोत्तम राम और जानकी का मंदिर प्रमुख है। भगवान शिव को बीस वर्ग फुट आयताकार गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया है। गर्भगृह का शीर्ष भाग कलश युक्त है। मंदिर का अग्रभाग मंडप शैली में बना है, जिसकी छत आठ कोणीय प्रस्तर स्तंभों पर टिकी है। मंदिर का पूरा भाग पत्थर से निर्मित है। जनश्रुति है कि कांकेर के सोमवंशी राजाओं के पूर्वज जगन्नाथपुरी ओडिशा के मूल निवासी थे। सोमवंशी राजाओं ने पहले पहल नगरी में अपनी राजधानी बनाई। कर्णेश्वर धाम मे एक प्राचीन अमृतकुंड है। किवदंती ही कि इस कुंड के जल के स्नान से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग ठीक हो जाता था। सोमवंशी राजाओं ने इसे मिट्टी से भर दिया।
अमृतकुंड से लगा हुआ छोटा सरोवर राजा के दो पुत्रियां सोनई-रूपई नाम से जाना जाता है।
संगम में लगाएंगे आस्था की डुबकी
26 फरवरी के मध्यरात्रि से हजारों श्रद्धालु व देवी देवताये बालका व महानदी के संगम में आस्था की डुबकी लगाकर कर कर्णेेश्वर महादेव का दर्शन करेंगे। 28 फरवरी को मड़ई है इस दिन दूर – दूर से आये विभिन्न देवी देवताये परम्परा अनुसार मेला स्थल का परिक्रमा करेंगे।
सजने लगी है दुकानें
पांच दिवसीय मेला में इस बार लोगो के मनोरंजन के लिए मीना बाजार,हवाई झूले सहित विभिन्न दुकाने सजने लगी है। लगातार कई वर्षों से मेला में मीना बाजार लगाने वाले सजल सिन्हा ने बताया कि इस वर्ष झूलो के साथ मौत का कुआँ नए साज सज्जा के साथ आकर्षण का केंद्र रहेगा।