छत्तीसगढ़

CG DMF Scam: हाईकोर्ट ने रानू साहू, सौम्या चौरसिया समेत सभी आरोपियों की स्थायी जमानत याचिकाएं की खारिज, कोर्ट ने कहा- गंभीर आर्थिक अपराध में लिप्त

CG DMF Scam: छत्तीसगढ़ की चर्चित और बहुचर्चित DMF District Mineral Foundation घोटाले में हाईकोर्ट ने आज बड़ा और सख्त रुख अपनाते हुए पूर्व IAS अफसर रानू साहू, पूर्व मुख्यमंत्री के उप सचिव सौम्या चौरसिया, एनजीओ संचालक मनोज कुमार और दलाल सूर्यकांत तिवारी की स्थायी जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं।

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए साफ कहा कि FIR और केस डायरी में दर्ज साक्ष्य ये साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि आरोपी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गंभीर आर्थिक अपराधों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल रहे हैं। ऐसे में जमानत का कोई आधार नहीं बनता।

DMF घोटाला क्या है? कहां से शुरू हुआ खेल?

District Mineral Foundation (DMF) फंड, खनन प्रभावित इलाकों के विकास के लिए बनाया गया था। लेकिन इस फंड का इस्तेमाल विकास की बजाय दलाली और कमीशनखोरी में होने लगा।

खासकर कोरबा जिले में इस फंड के नाम पर बड़े पैमाने पर टेंडर घोटाले का खुलासा हुआ। जांच में सामने आया कि टेंडर प्रक्रिया में 40% तक कमीशन वसूला जाता था, जो सीधे तौर पर कुछ चुनिंदा अफसरों, दलालों और प्रभावशाली लोगों की जेब में जाता था।

ईडी और EOW की जांच में उगले कई राज

प्रवर्तन निदेशालय (ED) और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) की संयुक्त जांच में सामने आया कि DMF फंड का दुरुपयोग एक संगठित नेटवर्क के ज़रिए किया गया। हर टेंडर में मोटा कमीशन, नियमों को ताक पर रखकर ठेके, और राजनीतिक प्रभाव का खुला खेल।

कौन हैं आरोपी और क्या हैं उन पर आरोप?

रानू साहू (पूर्व IAS)

आरोप है कि उन्होंने अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए टेंडर प्रक्रिया में भारी अनियमितता की। नियमों को दरकिनार कर मनमाने ढंग से काम करवाया।

सौम्या चौरसिया (पूर्व सीएम की उप सचिव)

उन पर अपने पद और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर निजी लाभ लेने का संदेह है। जांच एजेंसियों को शक है कि उनके इशारों पर ही कई फैसले लिए गए।

मनोज कुमार (NGO संचालक)

इस शख्स की भूमिका DMF फंड के दुरुपयोग और कागजी कामों में गड़बड़ी से जुड़ी बताई जा रही है।

सूर्यकांत तिवारी (बिचौलिया)

जांच एजेंसियों का दावा है कि यह व्यक्ति सारे खेल का मास्टरमाइंड था, जो कमीशन वसूली में सीधी भूमिका निभा रहा था।

कोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट ने दो टूक कहा कि केस डायरी और FIR में ऐसे कई तथ्य हैं जो ये साबित करते हैं कि आरोपी गंभीर आर्थिक अपराध में शामिल रहे हैं। अदालत का मानना है कि फिलहाल इन आरोपियों को जमानत देना न्यायहित में नहीं होगा।

DMF फंड जैसे संसाधन, जो खनन से प्रभावित गरीब और पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए बनाए गए थे, अगर अफसरों और नेताओं की दलाली में डूब जाएं, तो इससे बड़ा विश्वासघात कुछ नहीं।
छत्तीसगढ़ में जिस तरह से ये मामला सामने आया है, वो ये दिखाता है कि भ्रष्टाचार का जाल सिर्फ अफसरशाही तक सीमित नहीं, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी गहराई तक फैला है।

हाईकोर्ट का यह फैसला एक कड़ा संदेश है कि “पद और पहचान के बावजूद कानून सबके लिए बराबर है।”

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