छत्तीसगढ़

“पानी नहीं तो शादी नहीं!” छत्तीसगढ़ के एक गाँव में टूटा रिश्ता, पूरी खबर पढ़ हो जाएंगे हैरान…

रायपुर। कहते हैं शादी दो दिलों का मिलन होती है… लेकिन अगर बीच में पानी की लाइन न आए, तो रिश्ता वहीं सूख जाता है! छत्तीसगढ़ के एक गाँव में ऐसा ही हुआ, जहां पानी की किल्लत ने एक तय शादी का रिश्ता तोड़वा दिया।

और ये खबर कहीं दूर-दराज के रेगिस्तान की नहीं, बल्कि राजधानी रायपुर के पास आरंग तहसील के रींवा गाँव की है। जहां “जल जीवन मिशन” के बोर्ड लगे हैं, लेकिन नल से पानी नहीं निकल रहा।

अरपा, पैरी, इंद्रावती… सब सूखे पड़े हैं!

छत्तीसगढ़ का राजगीत तो बड़े शान से गाता है—
“अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार, इंद्रावती ह पखारे तोर पइंया…”
लेकिन ज़मीनी हकीकत ये है कि अब अरपा में धार नहीं, पैरी में बहाव नहीं और महानदी की अपारता भी सिर्फ गीतों में रह गई है।

इंद्रावती अब इतनी नहीं बची कि वो छत्तीसगढ़ महतारी का पांव धो सके।

पानी की किल्लत ने तुड़वाया रिश्ता

अब आते हैं उस शादी वाली बात पर…
लोमेस साहू (बदला हुआ नाम) की शादी पक्की हो गई थी। रस्में तय हो चुकी थीं, कार्ड छप चुके थे, घर में खुशी का माहौल था। लेकिन तभी लड़की वालों को पता चला कि रींवा गाँव में पानी की किल्लत है, तो उन्होंने साफ कह दिया—
“पानी नहीं, तो शादी नहीं!”

लोमेस ने कोशिश की, घर में खुद के खर्चे से 400 फीट गहरा बोर करवाया, लेकिन पानी वहाँ भी न निकला। लड़की वालों का भरोसा नहीं बना कि यहाँ पानी कभी आएगा… और रिश्ता टूट गया।

“नल जल योजना” नाम की सिर्फ योजना

रींवा गाँव के लोगों की मानें तो यह कहानी सिर्फ लोमेस की नहीं है।
पूर्व सरपंच दिलीप कुर्रे कहते हैं कि यहाँ सालों से पानी की समस्या है। सरकार आई, मंत्री गए, लेकिन हालत जस की तस है। पाइपलाइन बिछी है, लेकिन पानी नहीं आ रहा।

“जल जीवन मिशन” के तहत जो काम होना था, वो आधे रास्ते में ही अटक गया। योजना की फाइलें आगे बढ़ गईं, लेकिन नल से एक बूंद नहीं टपकी।

पानी के लिए गाँव से गाँव

गर्मी की मार और ऊपर से सूखा हाल…
रींवा गाँव के लोग रोज़ाना दूसरे गाँवों से पानी ढोकर लाते हैं। कई बार हालात ऐसे होते हैं कि बर्तन लेकर कुओं के पास लाइन लगानी पड़ती है, और फिर भी खाली हाथ लौटना पड़ता है।

मुरुम की ज़मीन होने से न तो कुएं में पानी टिकता है, न पेड़-पौधे पनपते हैं। गाँव हरियाली से भी महरूम है।

“शादी” नहीं, सिस्टम की हार है ये

अब सोचिए, जहाँ पानी की उम्मीद पर रिश्ते टूटने लगे, वहाँ बाकी ज़िंदगी कैसे चलती होगी?
यह सिर्फ एक गाँव की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में कई ऐसे गाँव हैं, जहां हालात और भी बदतर हैं।

स्मार्ट सिटी के बगल में ये स्मार्ट-less रियलिटी है।

जिम्मेदार कौन?

सरकार? विभाग? नेता?
या हम सब?
सच तो ये है कि पानी की इस हालत के लिए सिर्फ प्रशासन को कोसना काफी नहीं। हमने खुद भी जल को कभी सहेजा नहीं।
अब वक्त आ गया है कि सिर्फ योजनाओं के भरोसे न रहें, खुद भी जल बचाने की आदत डालें।

आखिरी बात

पानी नहीं तो शादी नहीं वाली ये खबर भले ही चौंकाए, लेकिन इससे बड़ा अलार्म कुछ नहीं। क्योंकि जब ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरत पूरी न हो, तो रिश्ते भी दम तोड़ने लगते हैं।

अब देखना ये है कि सरकार इस बार भी “नोटशीट” फाइल करती है या रींवा जैसे गाँवों की प्यास बुझाने कुछ ठोस करती है।

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