धमतरी कलेक्टर का करेली छोटी दौरा: “देश-विदेश में दिलाएंगे पहचान”, गांव के सेटलमेंट प्लान ने किया हैरान

धमतरी ज़िले के मगरलोड ब्लॉक का करेली छोटी गांव एक बार फिर सुर्खियों में है। वजह? गांव की व्यवस्थित बसाहट और कलेक्टर का दौरा। मंगलवार को धमतरी के कलेक्टर अविनाश मिश्रा खुद गांव पहुंचे और यहां की योजनाबद्ध व्यवस्था देखकर चकित रह गए।
गांव का प्लान देखकर बोले कलेक्टर – “यह तो टाउन प्लानिंग से भी पहले का मॉडल है!”
करेली छोटी गांव की सबसे बड़ी खासियत है इसकी सन् 1942 की सेटलमेंट प्लानिंग। जी हां, जिस वक्त टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग का नामोनिशान भी नहीं था, उस दौर में यह गांव पहले से ही मास्टर प्लान के मुताबिक बसाया गया था। कलेक्टर मिश्रा ने जब इसका अवलोकन किया, तो उन्होंने इसे “अद्भुत” बताया।
गांव की सफाई और विकास कार्यों की तारीफ़, मिनी स्टेडियम की मांग पर मिला आश्वासन
कलेक्टर ने गांव में बिजली, पानी, सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाओं की तारीफ़ करते हुए ग्रामीणों को बधाई दी। साथ ही, गांव के लोगों ने कलेक्टर से मिनी स्टेडियम बनाने की मांग रखी, जिस पर उन्होंने शासन को प्रस्ताव भेजने का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि करेली छोटी की विशेषताओं के कारण इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के प्रयास होंगे।

“पुरस्कृत होगा करेली छोटी”, रोजगार बढ़ाने पर भी हुई बात
कलेक्टर ने यह भी कहा कि गांव को राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए नामांकित किया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने यह संकेत भी दिया कि गांव में छोटे उद्योग लगाकर ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ाए जाएंगे।
गांव की सबसे बड़ी ताकत: सामूहिक सहयोग और व्यवस्था
करेली छोटी की कामयाबी के पीछे है गांव की ग्राम समिति। 1952 में बनाए गए नियमों को आज भी यहां के ग्रामीण पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। गांव की सड़क, बिजली, पानी जैसी ज़रूरी सुविधाएं इसी समिति की देखरेख में चलती हैं। खास बात ये है कि समिति के पास आज भी करीब 30 लाख रुपये जमा हैं और अब तक एक करोड़ रुपये से ज़्यादा के विकास कार्य कर चुकी है।
अंतिम संस्कार का खर्च भी समिति उठाती है, गांव पूरी तरह अपराध मुक्त
अगर किसी गरीब परिवार में मौत हो जाती है, तो कफन-दफन का खर्च भी समिति उठाती है। और सबसे ख़ास बात – गांव में आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। कोई विवाद होता है, तो थाने नहीं जाते, गांव की समिति में बैठकर मामला सुलझा लिया जाता है। यही वजह है कि थाने में आज तक गांव की कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई।

करेली छोटी: गांव नहीं, प्लानिंग का आइडियल मॉडल है
इस गांव की प्लानिंग किसी शहर से कम नहीं। सेक्टर में बंटा हुआ गांव, 40 फीट चौड़ी सड़कें, 20 फीट की नालियां, ड्रेनेज सिस्टम, स्कूल, राशन दुकान, श्मशान घाट, मंदिर और खेल मैदान जैसी सुविधाएं पहले से तय की गई थीं। और यह सब तब हुआ, जब आज के डिजिटल इंडिया का कोई अस्तित्व नहीं था।
गांव पहले महानदी के तट पर बसा था, लेकिन बाढ़ के कारण बार-बार उजड़ता था। ऐसे में तात्कालीन मालगुजार दाउ पवन कल्याण ने गांव को नई जगह बसाने के लिए भोपाल से इंजीनियर बुलाकर प्लान बनवाया। परिवार में जितने बेटे, उतने प्लॉट – यही था यहां का फार्मूला।
करेली छोटी सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि मिसाल है उस सोच की जो दशकों पहले रखी गई और आज भी मजबूती से खड़ी है। अब कलेक्टर की पहल से यह गांव एक बार फिर सुर्खियों में है, और हो सकता है जल्द ही यह गांव राज्य की सीमाओं को लांघकर देश-दुनिया में अपनी पहचान बना ले।