Lady Dies After Delivery: बिरगांव स्वास्थ्य केंद्र में डिलीवरी के 12 घंटे बाद महिला की मौत, डॉक्टर नदारद, वार्ड ब्वॉय ने लगाया इंजेक्शन, परिजन कर रहे कार्रवाई की मांग

रायपुर: Lady Dies After Delivery: राजधानी से सटे बिरगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से एक गंभीर मामला सामने आया है, जहाँ डिलीवरी के 12 घंटे बाद एक 22 वर्षीय महिला की दर्द से तड़पते हुए मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर की गैरमौजूदगी और वार्ड ब्वॉय की लापरवाही के चलते उनकी बेटी अपनी माँ की शक्ल भी ठीक से नहीं देख पाई।
रात 2 बजे बिगड़ी तबीयत, डॉक्टर नदारद, वार्ड ब्वॉय ने लगाया इंजेक्शन
जानकारी के मुताबिक, साक्षी निषाद नाम की महिला को डिलीवरी के लिए बिरगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था। मंगलवार दोपहर को उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन रात करीब 2 बजे उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। परिजनों का कहना है कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर मौके पर नहीं पहुंचे।

इस दौरान वार्ड ब्वॉय ने खुद ही इंजेक्शन लगा दिया और पानी पिलाया। परिजनों के अनुसार, इंजेक्शन के महज पांच मिनट बाद साक्षी की सांसें फूलने लगीं और कुछ ही देर में उनकी हालत बेहद नाज़ुक हो गई। जब तक कार्रवाई होती, तब तक देर हो चुकी थी।
परिजनों ने कहा – “डॉक्टर होता तो आज मेरी पत्नी जिंदा होती”
मृतिका के पति दीपक निषाद ने स्वास्थ्य विभाग और पुलिस प्रशासन से न्याय की मांग की है। उन्होंने रायपुर के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी और खमतराई थाना प्रभारी को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि, “सरकारी अस्पताल में पत्नी को सुरक्षित डिलीवरी के लिए भर्ती कराया था। लेकिन डिलीवरी के बाद जब उसकी हालत बिगड़ रही थी, तब कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। वार्ड ब्वॉय इंजेक्शन लगाता रहा और हम डॉक्टर का इंतजार करते रह गए।”
मेकाहारा पहुंचते-पहुंचते हो गई मौत
हालात जब हाथ से निकलने लगे तो साक्षी को मेकाहारा (अंबेडकर अस्पताल) रेफर किया गया, लेकिन वहाँ पहुंचने से पहले ही उसकी जान चली गई। डॉक्टरों ने अस्पताल पहुंचते ही साक्षी को मृत घोषित कर दिया।

अस्पताल में हंगामा, कार्रवाई की मांग
गुस्साए परिजनों ने घटना के बाद अस्पताल और थाने में जमकर हंगामा किया। उन्होंने अस्पताल प्रशासन, ड्यूटी से गायब डॉक्टर और लापरवाह वार्ड ब्वॉय के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। लोगों का कहना है कि यदि समय पर डॉक्टर मौजूद रहते, तो साक्षी की जान बचाई जा सकती थी।

सवाल उठता है – क्या सरकारी अस्पतालों में इंसानी जान की कोई कीमत नहीं?
इस घटना ने फिर से सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। न डॉक्टर, न निगरानी, न समय पर इलाज – ऐसे में ग्रामीण और मध्यमवर्गीय परिवार आखिर जाएं तो कहां?