छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: प्रेम-संबंध में सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध दुष्कर्म नहीं

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में कहा है कि अगर दो प्रेमी आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं और पीड़िता बालिग है, तो इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। यह फैसला उस मामले में आया है, जिसमें पहले एक युवक को पाक्सो एक्ट के तहत 10 साल की सजा दी गई थी।
कोर्ट ने पलटा पाक्सो कोर्ट का फैसला
बिलासपुर स्थित हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में दोषी करार दिए गए युवक की अपील पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत का फैसला खारिज कर दिया। कोर्ट ने युवक को रिहा करने का आदेश भी जारी कर दिया है।
दरअसल, पीड़िता ने खुद अदालत में कबूल किया कि वह आरोपी से प्रेम करती थी और दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाए थे। इसके बाद कोर्ट ने माना कि यह मामला जबरन दुष्कर्म का नहीं, बल्कि प्रेम प्रसंग का है।
पीड़िता की उम्र को लेकर नहीं मिले ठोस प्रमाण
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि पीड़िता घटना के समय 18 वर्ष से कम उम्र की थी। स्कूल के रिकॉर्ड में पीड़िता की जन्मतिथि 10 अप्रैल 2001 दर्ज थी, लेकिन खुद पीड़िता ने गवाही में बताया कि उसका जन्म 10 अप्रैल 2000 को हुआ था।
इसपर कोर्ट ने कहा कि स्कूल का दाखिल-खारिज रजिस्टर अकेले उम्र प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक उसे तैयार करने वाले की गवाही न हो। अभियोजन की तरफ से न तो कोई जन्म प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया गया और न ही मेडिकल तरीके से पीड़िता की उम्र की पुष्टि कराई गई।
मेडिकल रिपोर्ट ने भी दिया राहत
कोर्ट ने यह भी देखा कि मेडिकल जांच में पीड़िता के शरीर पर किसी तरह की चोट या जबरदस्ती के कोई निशान नहीं पाए गए। इससे साफ है कि संबंध आपसी सहमति से बने थे।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला
जस्टिस अरविंद वर्मा की एकलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर पीड़िता बालिग है और अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी, तो ऐसे मामले में दुष्कर्म या पाक्सो की धाराएं नहीं लगतीं। अदालत ने इसे प्रेम प्रसंग और सहमति से भागने का मामला करार देते हुए आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।