छत्तीसगढ़

Chironji Seeds: इस फल से डेढ़ महीने में ही मालामाल हो रहे छत्तीसगढ़ के इस जिले के किसान! मार्केट में भयंकर डिमांड, 200 से 300 रुपये प्रति किलो है कीमत

Chironji Seeds: जशपुर जिले के घने जंगलों में पाई जाने वाली बेशकीमती चिरौंजी अब ग्रामीणों के लिए कमाई का मजबूत जरिया बन गई है। क्षेत्र के किसान चिरौंजी बेचकर अच्छी खासी आमदनी कर रहे हैं। पेड़ पर सिर्फ डेढ़ महीने तक टिकने वाला ये फल किसानों के लिए “सीजनल बोनस” की तरह है। मई के अंत तक पेड़ों पर चिरौंजी रहती है, इसके बाद यह झड़ जाती है। इतने कम समय में भी ग्रामीण पेड़ों से चिरौंजी तोड़कर अपनी आय का मुख्य स्रोत बना चुके हैं। जिला मुख्यालय से दूर, अंदरुनी और पहाड़ी इलाकों में बसे गरीब परिवारों के लिए चिरौंजी की यह फसल आर्थिक संबल बन चुकी है। इसके जरिए अब कई घरों की माली हालत सुधरने लगी है।

200 से 300 रुपये किलो तक बिक रहा चिरौंजी

दरअसल, जशपुर के जंगलों में बेशकीमती चिरौंजी बाजार में 200 से शुरु होकर 300 रुपये किलो तक बिक रहा है। दाम ज्यादा मिलने से जंगल में चिरौंजी तोड़ने ग्रामीण बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। जशपुर जिले के चिरौंजी के दाने का दूसरे राज्यों व शहरों में सबसे ज्यादा डिमांड है। इनके बीज उड़ीसा, कानपुर, बैंगलोर, कलकत्ता, नागपुर, दिल्ली, जयपुर जैसे शहरों में अधिक जाता है। इन शहरों में चिरौंजी के बीज 3500 से 4 हजार रुपए तक बिकता है। इसे मशीन में अच्छी तरह से सफाई कर उत्पाद तैयार किया जाता है।

करीब 5 साल में तैयार होता है पौधा

बता दें कि, इसके पौधे तैयार होने में करीब 5 साल लग जाते हैं। इस साल बेमौसम बारिश व ओलावृिट के कारण इनके फूल झड़ गए। इससे उत्पादन में कमी आई है। एक पेड़ में 10 किलो तक बीज निकलता है। काफी परिश्रम के बाद चार के बीज निकाला जाता है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि, चिरौंजी को आम बोलचाल में चार(चिरौंजी) कहते है। जशपुर जिले में यह बहुयात मात्रा में पाई जाती है। इसकी सबसे ज्यादा कानपुर, बैंगलोर, नागपुर में डिमांड रहती है, लेकिन गांव के भोले-भाले नासमझ ग्रामीण इसे सेठ व्यापारियों को औने-पौने दामो में खरीदकर बड़े शहरों में महंगे कीमत पर बेचकर मालामाल होते है। यह फसल अंदरूनी और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले गरीब परिवारों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण साधन है।

किसानों की आय में हुआ इजाफा

इस समय में चिरौंजी की कीमत बाजार में 200 से 250 रुपए प्रति किलो तक मिल रही है, और उच्च गुणवत्ता वाली चिरौंजी के दाम 300 रुपए प्रति किलो तक पहुंच जाते हैं। बढ़ती कीमतों के कारण जशपुर वन मंडल के जंगलों में चिरौंजी तोड़ने वाले ग्रामीणों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके महंगे होने की वजह से न केवल जशपुर बल्कि बस्तर जिले से भी चिरौंजी का उत्पादन किया जाता है, जिससे इलाके के किसानों की आय में इजाफा हुआ है। इस व्यापार के जरिए ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार महसूस कर रहे हैं और चिरौंजी का व्यवसाय उनके लिए आय का महत्वपूर्ण साधन बन चुका है।

चिरौंजी के फायदे

चिरौंजी न सिर्फ स्वाद में बेहतरीन होती है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद मानी जाती है। इसका पाउडर मिठाइयों, बिस्किट और कई अन्य व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है। सरगुजा आदिवासी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष गोमती साय ने बताया कि जंगलों में मिलने वाली इस तरह की वनौपज को सरकार खरीदने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। लेकिन जानकारी के अभाव में ग्रामीण अक्सर अपनी उपज बिचौलियों को बेच देते हैं, जिससे उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पाता। उन्होंने बताया कि शासन द्वारा निर्धारित कुछ चुनिंदा स्थानों पर ही खरीदी होती है, जिसकी जानकारी सभी को नहीं होती। यही वजह है कि लोग सही प्लेटफॉर्म तक नहीं पहुंच पाते। गोमती साय ने कहा कि अब किसानों और वनवासियों को जागरूक किया जाएगा ताकि वे बिचौलियों की बजाय सीधे शासन को चिरौंजी और अन्य वन उत्पाद बेचें। इससे उन्हें उनकी उपज का सही दाम मिलेगा और आर्थिक रूप से भी लाभ होगा।

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