Dhamtari News: धमतरी में शराबी पिता ने अपने दो मासूम बच्चियों को मंदिर में छोड़कर भागा, दो दिन तक भूख-प्यास से तड़पती रहीं मासूम बच्चियां, पुजारी और पुलिस ने बचाई जान

धमतरी: Dhamtari News: छत्तीसगढ़ के धमतरी में दिल को चीर देने वाला वाकया सामने आया है। दो छोटी बच्चियां—एक महज 6 साल की, दूसरी सिर्फ 3 साल की—मंदिर के पास बैठी रो रही थीं। न कोई अपना, न कोई सहारा। वजह? उनका खुद का बाप उन्हें वहीं छोड़कर भाग गया। वो भी इसलिए, क्योंकि वो शराब के नशे में खुद को संभाल नहीं पा रहा था।

ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, हकीकत है। एक ऐसी हकीकत जो बताती है कि कैसे लत, गरीबी और लापरवाही मिलकर इंसानियत को शर्मसार कर देती है। अगर उस वक्त मंदिर के पुजारी ने बच्चियों को न देखा होता, तो क्या होता? इस सवाल का जवाब शायद हम सभी के दिल को दहला देता।

मंदिर के पुजारी ने देखी रोती हुई बच्चियां, फिर किया पुलिस को फोन

Dhamtari News: प्राथमिक जानकारी के अनुसार, दोनों बच्चियों की माँ ने दूसरी शादी कर ली है और पिता शराब की लत का शिकार है। अपनी नशे की आदतों और जिम्मेदारियों से भागते हुए उसने इन मासूमों को मंदिर के पास बेसहारा छोड़ दिया। दो दिन तक बच्चियां भूख-प्यास से तड़पती रहीं लेकिन पिता को उनके हालात पर तनिक भी दया नहीं आई। जब बच्चियां मंदिर के पास रोती हुई दिखीं, तो वहां के पुजारी को कुछ गड़बड़ लगा। उन्होंने तुरंत रुद्री पुलिस को सूचना दी। पुलिस मौके पर पहुंची और बच्चियों को सुरक्षित कब्जे में लेकर महिला एवं बाल विकास विभाग को सौंप दिया गया। इसके बाद दोनों बच्चियों को कांकेर स्थित सखी सेंटर में भेज दिया गया।

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शराब की लत ने छीना पिता से ज़िम्मेदारी का एहसास

रुद्री थाना प्रभारी अमित सिंह बघेल ने बताया कि बच्चियां स्थानीय निवासी हैं। उनके पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और शराब की लत के शिकार हैं। घर पर उनकी देखभाल करने वाला कोई और नहीं है। बताया गया कि बच्चों की मां पहले ही दूसरी शादी करके घर छोड़ चुकी है। ऐसे में बच्चियों की पूरी जिम्मेदारी पिता पर थी, लेकिन उसने भी अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया।

सखी सेंटर में सुरक्षित हैं बच्चियां, पिता से हो रही पूछताछ

फिलहाल दोनों बच्चियां कांकेर के सखी सेंटर में पूरी तरह सुरक्षित हैं। पुलिस ने शराबी पिता को भी सखी सेंटर बुलाया है और उससे पूछताछ की जा रही है।
पुलिस और महिला एवं बाल विकास विभाग यह तय करने में जुटे हैं कि बच्चियों की कस्टडी किसे दी जाए और आगे उनका भला कैसे सुनिश्चित किया जाए।

पुजारी की सतर्कता ने टाला बड़ा हादसा

अगर मंदिर के पुजारी समय पर बच्चियों को न देखते, तो यह मामला गंभीर रूप ले सकता था। बच्चियों की उम्र इतनी कम है कि उन्हें कुछ भी समझ नहीं आता। ऐसे में कोई भी अनहोनी हो सकती थी। इस घटना ने न सिर्फ समाज की संवेदनाओं को झकझोरा है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या सिर्फ पैदा कर देना ही पर्याप्त है, या माता-पिता बनने का मतलब कुछ और भी होता है?

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