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छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य – 10 प्रमुख नृत्यों की सूची चित्रों सहित

छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध संस्कृति और विशिष्ट लोक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। राज्य की सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा हैं इसके लोक नृत्य, जो कहानियाँ सुनाने, त्योहारों और अनुष्ठानों का उत्सव मनाने और इतिहास को संरक्षित करने का कार्य करते हैं। इस लेख में छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख लोक नृत्यों की चर्चा की गई है।

एक प्रमुख लोक नृत्य पंथी है, जो मुख्य रूप से बस्तर क्षेत्र में किया जाता है। यह गोंडी जनजातियों द्वारा त्योहारों के दौरान किया जाने वाला एक धार्मिक नृत्य है। नर्तकियां चमकीले वस्त्र पहनकर तालों के ताल पर गाथाएँ प्रस्तुत करती हैं। एक और लोकप्रिय लोक नृत्य पंडवानी है, जो महाभारत की कथाएँ नृत्य और गाने के माध्यम से प्रस्तुत करता है। कृषि आधारित समुदायों के लिए पैका एक प्रमुख युद्धक नृत्य है, जो एक योद्धा के दैनिक कार्यों को दर्शाता है। चैतरा पेरेम नृत्य वसंत ऋतु और फसल के स्वागत के लिए किया जाता है।

विवाह समारोहों का हिस्सा सैला नृत्य है। अन्य उल्लेखनीय लोक नृत्यों में बाघ, ओसबरा, और दीसरी शामिल हैं। इन नृत्यों के माध्यम से छत्तीसगढ़ की जनजातीय जीवनशैली और सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत चित्रण किया जाता है। यह लेख छत्तीसगढ़ के लोक नृत्यों के बारे में एक संक्षिप्त परिचय प्रदान करता है, जिसमें उनके इतिहास, शैलियों, सांस्कृतिक महत्व और लोक नृत्य का चित्र को प्रमुखता से बताया गया है।

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छत्तीसगढ़ के शीर्ष 10 लोक नृत्य

छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख जनजातीय और ग्रामीण लोक नृत्य इस प्रकार हैं – पंथी, राउत नाचा, कर्मा, पंडवानी, सूवा, सैला, गेंदी, कक्सार, चेरचेरा, और खड़ा नाचा। पंथी गोंडी जनजाति द्वारा त्योहारों के दौरान किया जाता है। राउत नाचा में नर्तक पेड़ों और पत्तों से बने मास्क पहनकर जानवरों की नकल करते हैं। कर्मा में सामूहिक नृत्य है, जो आनंद और शांति का प्रतीक है। पंडवानी महाभारत की कथाएँ नृत्य के रूप में प्रस्तुत करता है। सूवा गाय के चराने की गतिविधियों का अनुकरण करता है। सैला विवाह समारोहों का हिस्सा है। गेंदी नृत्य में समुदाय की एकता को दर्शाया जाता है। कक्सार नृत्य उत्सवों के दौरान सामूहिक नृत्य होता है। चेरचेरा युवाओं की लचीलापन को प्रदर्शित करता है। खड़ा नाचा पारंपरिक आदर्शों को स्थिर रूप में दिखाता है। ये नृत्य छत्तीसगढ़ की जीवंत नृत्य संस्कृति का प्रतीक हैं।

1. पंथी नृत्य: Panthi Nritya

पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख लोक नृत्य है, ऊपर छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य पंथी नृत्य का चित्र दिया गया है, यह विशेष रूप से बस्तर क्षेत्र में। यह एक धार्मिक नृत्य है, जिसे गोंडी जनजाति द्वारा विभिन्न त्योहारों और अवसरों पर किया जाता है। नर्तक चमकीले वस्त्र पहनकर, ताल और ढोल की थाप पर सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान पुरानी लोक कथाएँ और मिथक प्रस्तुत किए जाते हैं। पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ की गोंडी संस्कृति का जीवंत उदाहरण है और इसे राज्य की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

2. राउत नाचा: Raut Nacha

राउत नाचा करते कलाकार, पारंपरिक पोशाक में, फसल उत्सव के दौरान छत्तीसगढ़ में नृत्य करते हुए।

राउत नाचा छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले का प्रमुख लोक नृत्य है, ऊपर राउत नाचा का चित्र दर्शाया गया है, जो मुख्य रूप से फसल के मौसम में किया जाता है। इस नृत्य की विशेषता यह है कि नर्तक जानवरों की नकल करने के लिए पत्तों और शाखाओं से बने मुखौटे पहनते हैं। नृत्य में जानवरों द्वारा फसलों को प्राकृतिक आपदाओं या शिकारियों से बचाने के दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं। यह नृत्य प्रकृति के साथ गहरे संबंध को दर्शाता है और मां प्रकृति का आभार व्यक्त करता है।

3. कर्मा नृत्य: Karma Nritya

सुरगुजा क्षेत्र की महिलाएं कर्मा नृत्य करते हुए, सुंदर समन्वित चालों और पारंपरिक वेशभूषा में।

कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़ के सुरगुजा क्षेत्र का एक प्रमुख लोक नृत्य है। ऊपर कर्मा नृत्य का चित्र दिया गया है, इसमें 80 से अधिक नर्तक सामूहिक रूप से ताल के साथ नृत्य करते हैं। यह नृत्य विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो गाँव की देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इसे प्रस्तुत करती हैं। नृत्य के दौरान जटिल हाथ और पैर के आंदोलनों से सुंदर ज्यामितीय पैटर्न बनते हैं। यह सामूहिक नृत्य समुदाय के बीच एकता और सांस्कृतिक भावना को प्रदर्शित करता है।

4. पंडवानी नृत्य: Pandvani Nritya

पंडवानी नृत्य करते कलाकार महाभारत की कहानियों को नृत्य और संगीत के माध्यम से जीवंत करते हुए।

पंडवानी नृत्य एक अद्वितीय लोक कला रूप है, पंडवानी नृत्य का ऊपर चित्र दर्शाया गया है, जो महाभारत की कथाओं को नृत्य और गाने के माध्यम से प्रस्तुत करता है। नर्तक विभिन्न पात्रों का अभिनय करते हैं और पारंपरिक छत्तीसगढ़ी लोक गीत “पैका” के साथ इसे प्रस्तुत करते हैं। इस नृत्य में विभिन्न पारंपरिक उपकरणों का उपयोग होता है और नृत्य के साथ-साथ गीत भी महाभारत की कहानियों को जीवंत कर देते हैं।

5. सूवा नृत्य: Suva Nritya

बिलासपुर क्षेत्र के ग्रामीण कलाकार सूवा नृत्य करते हुए, गाय चराने और पारंपरिक जीवनशैली को दर्शाते हुए।

सूवा नृत्य मुख्य रूप से बिलासपुर जिले में किया जाता है। सुवा नृत्य का चित्र ऊपर दर्शाया गया है, यह नृत्य पारंपरिक गोवाला समुदाय के जीवनशैली को दर्शाता है, जिसमें गायों की चराई, रक्षा और दूध दुहने जैसी गतिविधियाँ नृत्य के माध्यम से दिखायी जाती हैं। यह नृत्य कृषि आधारित संस्कृति का प्रतीक है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गोवाला समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करता है।

6. सैला नृत्य: Saila Nritya

सैला नृत्य करते महिलाएं शादी समारोह के दौरान बांस की छड़ी का उपयोग करते हुए पारंपरिक छत्तीसगढ़ी गीत गाती हुई।

सैला नृत्य छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र का एक प्रमुख विवाह समारोह है। सैला नृत्य का चित्र ऊपर दर्शाया गया है, इस नृत्य में महिलाएं बांस की छोटी छड़ें पकड़कर चक्रीय नृत्य करती हैं। यह नृत्य महिला शक्ति का उत्सव है और नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देने के लिए किया जाता है। इसके माध्यम से पारंपरिक सामुदायिक संबंधों और सांस्कृतिक मान्यताओं को जीवित रखा जाता है।

7. गेड़ी नृत्य: Gedi Nritya

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में गेड़ी नृत्य करते हुए आदिवासी कलाकार, पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ।

गेड़ीनृत्य छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र का पारंपरिक लोक नृत्य है, गेड़ी नृत्य का चित्र ऊपर दर्शाया गया है, जो खासकर शादी और फसल उत्सवों में किया जाता है। इसमें पुरुष और महिलाएं मिलकर एक वृत्ताकार नृत्य करते हैं। महिलाएं मध्य में लकड़ी या पंखों के साथ नृत्य करती हैं, जबकि पुरुष अन्य नर्तकों के साथ मिलकर इसे संगीत और ताल के साथ प्रस्तुत करते हैं। यह नृत्य पारंपरिक कलाओं और ग्रामीण जीवन के साथ सामंजस्य को दर्शाता है।

8. कक्सार नृत्य: Kaksar Nritya

ककसर नृत्य करते अबूझमाड़िया जनजाति के युवा, पारंपरिक परिधानों और आभूषणों में मानसून उत्सव के दौरान।

कक्सार नृत्य छत्तीसगढ़ के आबुजमारिया जनजाति का पारंपरिक नृत्य है, कक्सार नृत्य का चित्र ऊपर दर्शाया गया है, जो मानसून के मौसम में बारिश के देवता से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह नृत्य सामूहिक होता है, जिसमें पुरुष और महिलाएं एक वृत्ताकार नृत्य करते हैं और हाथों से तालबद्ध रूप से ध्वनि उत्पन्न करते हैं। यह नृत्य उत्सव के रूप में सामूहिक

खुशी और बारिश के लिए प्रार्थना का प्रतीक है।

9. चेरचेरा नृत्य: Chaerchera Nritya

चेरचेरा नृत्य करते ग्रामीण कलाकार फसल कटाई के त्योहार के दौरान पारंपरिक वेशभूषा में।

चेरचेरा नृत्य छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोक नृत्य है, चेरचेरा नृत्य का चित्र ऊपर दर्शाया गया है, जो चेरचेरा त्योहार के दौरान किया जाता है। यह त्योहार फसल के मौसम के समाप्त होने के बाद मनाया जाता है और प्रकृति के आशीर्वाद का आभार व्यक्त करता है। नर्तक एक वृत्त में नृत्य करते हैं और विभिन्न नृत्य रूपों जैसे कूदना और घुमाव के माध्यम से इसे प्रस्तुत करते हैं। यह नृत्य सामूहिक शक्ति और सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है।

10. खड़ा नाचा: khada Nritya

खड़ा नाचा नृत्य छत्तीसगढ़ का एक पारंपरिक लोक नृत्य है, खड़ा नृत्य का चित्र ऊपर दर्शाया गया है, जो विशेष रूप से जनजातीय समुदायों द्वारा किया जाता है। यह नृत्य समूह रूप में किया जाता है, जिसमें नर्तक स्थिर मुद्राओं में नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान ढोल और बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल होता है। यह नृत्य छत्तीसगढ़ की पारंपरिक आदर्शों और प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक है।

छत्तीसगढ़ लोक नृत्य के 5 प्रमुख नर्तक

CG Lok Nritya ke Nartak: छत्तीसगढ़ में लोक नृत्य कला की एक लंबी और समृद्ध परंपरा रही है, जिसे दुनियाभर में अपनी विशेषता और विविधता के लिए जाना जाता है। यहाँ के प्रमुख नृत्य शैलियों को कई कलाकारों ने अपनी नृत्यकला से संजीवनी दी है। इस लेख में हम कुछ प्रमुख लोक नृत्य शैलियों के बारे में बात करेंगे, साथ ही उन नर्तकों का उल्लेख करेंगे जिन्होंने इन्हें नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

1. सुआ नृत्य के प्रमुख नर्तक:

श्रीमती नरेश्वरी वर्मा: छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध लोक नृत्यांगना हैं, जिन्होंने सुआ नृत्य को नई पहचान दी। उन्होंने इस नृत्य को कला की उच्चतम स्तर तक पहुँचाया है।

2. राउत नाचा के प्रमुख नर्तक:

पं. शंकर प्रसाद वर्मा: राउत नाचा के क्षेत्र में पं. शंकर प्रसाद वर्मा का योगदान महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस नृत्य को मंच पर लाकर छत्तीसगढ़ी संस्कृति को प्रगति दी।

3. पन्थी नाच के प्रमुख नर्तक:

पं. रामकृष्ण वर्मा: पं. रामकृष्ण वर्मा ने पन्थी नृत्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके द्वारा की गई प्रस्तुतियों ने इस नृत्य को न केवल छत्तीसगढ़ में, बल्कि पूरे देश में लोकप्रिय बनाया।

4. करमा नृत्य के प्रमुख नर्तक:

धर्मेंद्र साहू: धर्मेंद्र साहू ने करमा नृत्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ की संस्कृति को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया। उनकी नृत्य शैली ने इस नृत्य को एक नया आयाम दिया।

5. पंडवानी के प्रमुख गायिका और नर्तकी

तिजन बाई: छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध पंडवानी गायिका और नर्तकी हैं, जिन्होंने महाभारत की गाथाओं को नृत्य और गायन के माध्यम से जीवंत किया। उनकी प्रस्तुतियाँ भावनाओं से भरी होती हैं, जो दर्शकों को गहरे भावनात्मक स्तर पर जोड़ती हैं। पंडवानी के प्रचार-प्रसार में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, और उन्हें पद्मश्री जैसे कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है। तिजान बाई ने छत्तीसगढ़ की लोक कला को न केवल भारतीय मंचों पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिष्ठित किया है।

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