छत्तीसगढ़

हाईकोर्ट का सख्त फैसला: सहमति से तलाक हो जाए, फिर भी देना होगा महीने का खर्च

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया है कि चाहे पति-पत्नी ने आपसी सहमति से तलाक लिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पत्नी को भरण-पोषण नहीं मिलेगा।
जब तक तलाकशुदा महिला की दूसरी शादी नहीं हो जाती, तब तक वो अपने पूर्व पति से गुज़ारा भत्ता लेने की हकदार है।

ये फैसला जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की एकल पीठ ने सुनाया है। उन्होंने साफ कहा, “पूर्व पत्नी को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आर्थिक सहायता देना पति की नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी है।”

क्या है पूरा मामला?

मामला मुंगेली जिले के एक युवक और युवती का है, जिनकी शादी 12 जून 2020 को हुई थी। शादी के कुछ ही समय बाद दोनों के रिश्ते में खटास आ गई। महिला ने आरोप लगाया कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और घर से निकाल दिया गया।

इसके बाद महिला ने 27 जून 2023 को मुंगेली फैमिली कोर्ट में केस दायर किया और 15,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की। महिला का कहना था कि उसका पति ट्रक ड्राइवर है और खेती से सालाना 2 लाख रुपये की कमाई भी करता है।

पति बोला- तलाक हो चुका है, अब क्यों भरण-पोषण?

पति की दलील थी कि 20 फरवरी 2023 को दोनों के बीच आपसी सहमति से तलाक हो चुका है। उसने कोर्ट में कहा कि पत्नी खुद बिना कारण घर छोड़कर चली गई थी, इसलिए अब वो किसी भत्ते की हकदार नहीं है।

लेकिन फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अक्टूबर 2023 में महिला के पक्ष में फैसला सुनाया और हर महीने 3,000 रुपये भरण-पोषण देने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

पति इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचा, लेकिन वहां से भी उसे राहत नहीं मिली।
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए पति की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक के बावजूद पत्नी की ज़रूरतें खत्म नहीं हो जातीं।

इस फैसले के बाद एक बार फिर से साफ हो गया है कि तलाक से रिश्ते खत्म हो सकते हैं, लेकिन जिम्मेदारियां नहीं।

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