बस्तर की मांग- अब समझौता नहीं, बस नक्सलियों का सफाया चाहिए! बस्तर के लोग क्यों नक्सलियों से शांति समझौता के पक्ष में नहीं है? देखिए पूरी रिपोर्ट

रायपुर: Bastar Anti Naxal Operation: बस्तर अब खामोश नहीं है। नक्सली हिंसा की आग में दशकों तक झुलसने के बाद अब वहां की जनता खुद मोर्चा संभाल रही है। पहली बार बस्तर के नक्सल पीड़ितों ने सरकार के सामने खुलकर अपनी बात रखी है—”अब न शांति वार्ता चाहिए, न कोई समझौता।”

राजधानी रायपुर में राजभवन के सामने जमा हुए बस्तरवासियों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मुलाकात कर साफ कर दिया कि अब बस्तर में नक्सलवाद के लिए कोई जगह नहीं बची। नक्सलियों के साथ किसी तरह की बातचीत या सीज़फायर का ये सही वक्त नहीं है।

सरकार ने भी दिखाया दम: मार्च 2026 तक तय है खात्मे की डेडलाइन

राज्य सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि नक्सलियों से बातचीत का दौर अब पीछे छूट चुका है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और गृह मंत्री ने नक्सल खात्मे के लिए मार्च 2026 तक की डेडलाइन तय कर दी है। और जमीन पर इसका असर भी दिख रहा है।

पिछले 15 महीनों में 400 से ज्यादा नक्सली मारे जा चुके हैं। इतना ही नहीं, नक्सली लीडर्स अब खुद की जान बचाने के लिए सरकार को बार-बार सीजफायर के लिए चिट्ठियां लिख रहे हैं। लेकिन सरकार का स्टैंड साफ है—”अब देर हो चुकी है, लड़ाई रुकेगी नहीं।”

जब पीड़ित बोले—’वो जब मार रहे थे, तब अमन की याद क्यों नहीं आई?’

बस्तर से आए नक्सल पीड़ितों ने भावुक अपील की—”हमने गांव जलते देखे हैं, अपनों को खोया है। जब नक्सली निर्दोषों का कत्लेआम कर रहे थे, तब उन्हें अमन की याद क्यों नहीं आई?”

लोगों ने ज्ञापन देकर कहा कि नक्सलियों से अब कोई भी संवाद लोकतंत्र और पीड़ितों के ज़ख्मों के साथ धोखा होगा। इस मांग का राज्य सरकार ने खुला समर्थन किया है।

तेलंगाना के नेताओं की बयानबाज़ी पर छत्तीसगढ़ में नाराज़गी

इस बीच तेलंगाना के कुछ नेता नक्सलियों के समर्थन में खुलकर सामने आ गए हैं। KCR ने बस्तर में मारे गए नक्सलियों को ‘आदिवासियों का नरसंहार’ बताया, तो तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने इस मामले को केंद्र तक पहुंचाने की बात कही।

इस पर छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नक्सलवाद को राजनीतिक चश्मे से देखना उन शहीदों का अपमान है जिन्होंने अपनी जान देकर बस्तर को सुरक्षित बनाया।

ऑपरेशन बस्तर: अब नक्सली भी घबराए हुए हैं

तेलंगाना सीमा से सटे कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में 10-20 हजार जवानों की तैनाती से नक्सली बुरी तरह घिरे हुए हैं। टॉप लीडर्स के लिए खुद के ठिकानों में भी सुरक्षित रहना अब मुश्किल हो गया है। हालत ये है कि महीने भर में 5-5 चिट्ठियां सरकार को भेजकर नक्सली युद्ध विराम की गुहार लगा रहे हैं।

अब जब नक्सलियों की पोल खुल चुकी है, उनके साथ खड़े नेता भी एक्सपोज हो रहे हैं, तो सवाल बड़ा है—क्या वाकई अब शांति वार्ता की कोई गुंजाइश बची है?

Also Read: छत्तीसगढ़ का पहला AI डाटा सेंटर पार्क बनेगा नवा रायपुर में: सीएम साय करेंगे भूमिपूजन, एक हजार करोड़ की लागत से 13.5 एकड़ में होगा निर्माण

दक्षिण कोसल का Whatsapp Group ज्वाइन करे

Ravi Pratap Pandey

रवि पिछले 7 वर्षों से छत्तीसगढ़ में सक्रिय पत्रकार हैं। उन्होंने राज्य के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहराई से रिपोर्टिंग की है। जमीनी हकीकत को उजागर करने और आम जनता की आवाज़ को मंच देने के लिए वे लगातार लेखन और रिपोर्टिंग करते रहे हैं।

Related Articles

Back to top button