सिम्स के मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा, शासन के सक्रिय प्रयास से सुधरी है सिम्स की स्थिति
रायपुर, 20 सितंबर 2024. छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (सिम्स) को लेकर मीडिया में आयी कुछ खबरों पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है। सिम्स से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने कहा कि, किसी भी तरह की खबर प्रकाशित करने के पूर्व पत्रकारों (मीडिया) को पहले पूरी तरह पुष्टि कर लेनी चाहिए। अपुष्ट खबरों से किसी भी संस्था की छवि पर बुरा असर होता है और इससे लोगों का विश्वास सिम्स जैसे चिकित्सा संस्थानों पर कम होता है। हाईकोर्ट ने इसे मीडिया का गैर जिम्मेदाराना रवैया माना। इस दौरान हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि शासन-प्रशासन के सक्रिय प्रयासों से सिम्स की स्थिति सुधरी है।
गौरतलब है कि बीते दिनों समाचार-पत्रों में सिम्स से जुड़ी दो खबरें प्रकाशित की गई थीं। इसमें पहली खबर में 14 सितंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी, जिसमें सीने में दर्द के बाद डॉक्टरों द्वारा इलाज नहीं किए जाने और लाइन में खड़े रहने के दौरान हार्ट अटैक से व्यक्ति की मौत हो जाने की जानकारी दी गई थी। वहीं दूसरी खबर 20 सितंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी, जिसमें सिम्स के डॉक्टरों की लापरवाही के कारण एक बच्चे को गैंगरीन होने की बात कही गई है। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान इन खबरों की कतरन दिखाई गई। इस पर शासन की ओर से पक्ष रखते हुए अधिवक्तागणों ने बताया कि जिस व्यक्ति की मौत समय पर इलाज न मिल पाने की वजह से हो जाना बताया जा रहा है, उसे जाँच के लिए लाया गया था। इस दौरान जैसे ही व्यक्ति को सीने में दर्द हुआ, 15 मिनट के भीतर उनका इलाज शुरू हो गया था। इलाज के दौरान सिम्स के डॉक्टरों द्वारा सीपीआर देने समेत अन्य चिकित्सकीय उपाय अपनाए गए थे।
वहीं मासूम बच्चे को सिम्स के डॉक्टरों की लापरवाही से गैंगरीन होने के दूसरे मामले में शासन की ओर से अधिवक्तागणों ने बताया गया कि जून 2023 में बच्चे का जन्म सिम्स में हुआ था। नवजात की स्थिति सामान्य न होने पर उसे ड्रीप लगानी पड़ी थी। 5 जून 2023 को नवजात की स्थिति सामान्य होने पर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया है। तब रिपोर्ट में नवजात की चिकित्सकीय स्थिति पूरी तरह सामान्य थी। परिजन 7 जून 2023 को नवजात को लेकर फिर सिम्स पहुँचे थे लेकिन उन्होंने न पर्ची कटाई न वहाँ डॉक्टरों को दिखाया। वे थोड़ी देर बाद निजी सोनोग्राफी सेंटर लेकर चले गए। उक्त रिपोर्ट में भी गैंगरीन के लक्षण का कोई उल्लेख नहीं है। इसके बाद परिजन किसी निजी अस्पताल में नवजात का उपचार कराते रहे। फिर 30 जून 2023 को नवजात के परिजन ने सिम्स के डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए सिटी कोतवाली में एफआईआर कराई और फरवरी 2024 में बिलासपुर कलेक्टर से शिकायत करते हुए मुआवजा की माँग की गई। इस पर जिला कलेक्टर की ओर से जाँच समिति भी बनाई गई।
मामले में दलीलों को सुनते हुए हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने माना कि यह खबरें एकतरफा, बिना पुष्टि के प्रकाशित की गई हैं, जो पत्रकारिता के मापदंडों के अनुरूप गंभीर मामला है। हाईकोर्ट ने पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को नसीहत दी है कि वे हमेशा ध्यान रखें कि कोई भी खबर बिना पूर्ण पुष्टि के प्रकाशित न की जाए।