Mahapurush Of Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के प्रमुख महापुरुष: जिनके योगदान ने राज्य को नई दिशा दी

Mahapurush Of Chhattisgarh: छत्तीसगढ़, जो अपनी समृद्ध संस्कृति, लोक कला और वीरता के लिए प्रसिद्ध है, ने कई महापुरुषों को जन्म दिया है जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया, बल्कि समाज सुधार, शिक्षा, और पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए जानते हैं कुछ ऐसे महापुरुषों के बारे में जिन्होंने छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया।

Veer Narayan Singh: वीर नारायण सिंह – स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद

वीर नारायण सिंह, जिनका जन्म 1795 में सोनाखान में हुआ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद माने जाते हैं। 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर फांसी दे दी गई। उनकी शहादत को 10 दिसंबर को ‘शहीद वीर नारायण सिंह दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उनकी याद में रायपुर में शहीद वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम और शहीद वीर नारायण सिंह कॉलेज जैसे संस्थान स्थापित किए गए हैं।

Pt. Sunderlal Sharma: पं. सुंदरलाल शर्मा – शिक्षा और समाज सुधारक

पंडित सुंदरलाल शर्मा छत्तीसगढ़ के प्रखर समाज सुधारक, शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जन्म 21 दिसंबर 1881 को रायपुर जिले के कुम्हारी गांव में हुआ था। वे बचपन से ही सामाजिक असमानताओं और छुआछूत जैसी बुराइयों के खिलाफ संवेदनशील थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय दलित, शोषित और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ में जनजागरण की शुरुआत की और शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कई स्कूलों और पुस्तकालयों की स्थापना की।

महात्मा गांधी से प्रभावित होकर वे सत्याग्रह और अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। उन्होंने छत्तीसगढ़ में स्वदेशी आंदोलन को गति दी और ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से विचार क्रांति की नींव रखी। वे भारत की राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करने में जुटे रहे। उनकी सरल भाषा, स्पष्ट दृष्टि और गहरी संवेदनशीलता ने उन्हें जननेता बना दिया।

उनके योगदान को सम्मान देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने उनकी जयंती, 3 जनवरी, को ‘राज्य शिक्षक दिवस’ घोषित किया है और उनके नाम पर ‘पं. सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय’ की स्थापना की गई है। वे आज भी छत्तीसगढ़ की सामाजिक चेतना और बदलाव की प्रेरणा बने हुए हैं।

Guru Ghasidas: गुरु घासीदास – संत और समाज सुधारक

गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी में हुआ था। वे सतनामी संप्रदाय के प्रवर्तक थे और समाज में व्याप्त छुआछूत, जात-पात और ऊंच-नीच की दीवारों के खिलाफ सबसे बड़ी आवाज बने। उन्होंने “मनखे-मनखे एक समान” का संदेश दिया, जो आज भी छत्तीसगढ़ के जनमानस में गूंजता है। गुरु घासीदास ने ऐसे समय में लोगों को जागरूक किया जब दलित और पिछड़ा समाज सामाजिक अन्याय से टूट चुका था। उन्होंने कोई हथियार नहीं उठाया, बस सतनाम का झंडा लेकर निकले और मानवता की मशाल जला दी। गिरौदपुरी को उन्होंने आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बनाया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था और आत्मसम्मान का प्रतीक है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि बदलाव उपदेश से नहीं, उदाहरण से आता है।

Minimata: मिनीमाता – महिला उत्थान की प्रतीक

मिनीमाता का जन्म 1920 में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के कोहका गांव में हुआ था। वे न सिर्फ एक समाज सेविका थीं, बल्कि दलित और महिला अधिकारों की दमदार पैरोकार भी थीं। उन्होंने छत्तीसगढ़ के पिछड़े और दबे-कुचले वर्गों, खासकर महिलाओं की स्थिति को बदलने के लिए ज़मीन पर उतरकर काम किया। विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह उन्मूलन और महिला शिक्षा जैसे मुद्दों पर उन्होंने समाज को सीधा चुनौती दी। वे 1952 में लोकसभा के लिए चुनी गईं और संसद में बैठने वाली देश की पहली दलित महिला नेताओं में से एक बनीं। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि बदलाव लाना है तो संसद से लेकर समाज तक, हर मोर्चे पर डटे रहना पड़ता है। आज भी छत्तीसगढ़ में जब महिला सशक्तिकरण की बात होती है, तो सबसे पहले नाम आता है – मिनीमाता का।

Dr. Khubchand Baghel: डॉ. खूबचंद बघेल – छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के प्रेरक

डॉ. खूबचंद बघेल का जन्म 19 जुलाई 1900 को रायपुर जिले के पथरी गांव में हुआ था। वे सिर्फ एक चिकित्सक नहीं, बल्कि एक महान समाजवादी और विचारक थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ की अलग पहचान और उसके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। बघेल जी ने छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के लिए सबसे पहले आवाज़ उठाई और यह समझ लिया कि इस क्षेत्र की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति भारत के अन्य हिस्सों से अलग है, जिसके कारण इस क्षेत्र को विशेष ध्यान और अधिकारों की आवश्यकता है। 1956 में ‘छत्तीसगढ़ महासभा’ की स्थापना कर उन्होंने इस मुद्दे को जन-जन तक पहुंचाया और छत्तीसगढ़ को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया। डॉ. बघेल ने ‘राष्ट्रबंधु’ जैसे पत्रों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया और उनके विचारों ने इस आंदोलन को प्रगति की दिशा दी। उनकी जयंती 19 जुलाई को ‘राज्य निर्माण दिवस’ के रूप में मनाई जाती है, जो इस बात का प्रतीक है कि किसी भी अकेले व्यक्ति का संघर्ष पूरी व्यवस्था और सोच को बदलने की ताकत रखता है।

Swami Atmananda: स्वामी आत्मानंद – शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

स्वामी आत्मानंद का जन्म 1929 में रायपुर जिले के बरबंदा गांव में हुआ था। वे ऐसे संत थे जिन्होंने तप, ध्यान और भजन के साथ-साथ शिक्षा को भी साधना का माध्यम माना। उन्होंने खासकर बालिकाओं की शिक्षा पर ज़ोर देते हुए ‘विश्वास’ संस्था की स्थापना की, ताकि समाज के पिछड़े वर्गों को शिक्षा का उजाला मिल सके। स्वामी जी ने ‘विवेक ज्योति’ नामक पत्रिका शुरू की, जो सिर्फ एक प्रकाशन नहीं, बल्कि बौद्धिक क्रांति का माध्यम बनी। उन्होंने शिक्षा को सिर्फ डिग्री का साधन नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन का औज़ार माना। आज छत्तीसगढ़ में जो ‘स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना’ चल रही है, वो उन्हीं के विचारों को आधुनिक रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश है। उनका जीवन बताता है कि जब साधु कलम उठाए, तो बदलाव की इबारत लिखी जाती है।

Pawan Diwan: पवन दीवान – लोक कला के संरक्षक

पवन दीवान का जन्म 1950 में रायपुर जिले के ग्राम देवपुरी में हुआ था। वे छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति के ऐसे सच्चे सिपाही थे, जिन्होंने लोक गीतों, कहानियों और परंपराओं को मंच से लेकर मेला-ठेला तक जिंदा रखा। संगीत उनके लिए साधना था और लोककला, समाज की आत्मा। उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत को न सिर्फ सहेजा बल्कि नए आयाम भी दिए, ताकि अगली पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रह सके। वे कलाकार नहीं, लोकसंस्कृति के संरक्षक थे, जिनकी मेहनत की बदौलत आज छत्तीसगढ़ी भाषा और गीतों की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर भी बन पाई है। पवन दीवान का नाम जब लिया जाता है, तब सिर्फ सुरों की बात नहीं होती, तब माटी से रिश्ते की बात होती है।

Thakur Pyarelal Singh: ठाकुर प्यारेलाल सिंह – सहकारिता आंदोलन के नेता

ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसंबर 1891 को राजनांदगांव जिले के दैहान गांव में हुआ था। वे छत्तीसगढ़ के एक ऐसे संघर्षशील नेता थे जिन्होंने सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। 1909 में उन्होंने राजनांदगांव में ‘सरस्वती पुस्तकालय’ की स्थापना की, जिससे शिक्षा का प्रकाश दूर-दूर तक फैलने लगा। 1920 में बंगाल नागपुर कॉटन मिल के मजदूरों की हड़ताल का नेतृत्व करके उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और इस आंदोलन को एक नया मोड़ दिया। ठाकुर प्यारेलाल सिंह को छत्तीसगढ़ का गांधी भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलकर अपनी राजनीति और समाज सेवा की दिशा तय की। उन्होंने सहकारिता आंदोलन को बढ़ावा दिया और छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कई योजनाओं को लागू किया। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लिए संघर्ष करना ही असली देशभक्ति है।

Pandit Ravi Shankar Shukla: पंडित रविशंकर शुक्ल – राज्य के पहले मुख्यमंत्री

पंडित रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1884 को रायपुर जिले के ग्राम दुर्ग में हुआ। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। उनका जीवन भारतीय राजनीति, समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है। रविशंकर शुक्ल का जन्म सागर (वर्तमान मध्य प्रदेश) में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर, जबलपुर और नागपुर में प्राप्त की। वह 1906 में वकालत करने लगे, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के आह्वान पर उन्होंने वकालत छोड़ दी और महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इस दौरान वह कई बार जेल गए, जिसमें 1930 में उन्हें तीन साल की सजा भी हुई।रविशंकर शुक्ल ने 1946 में मध्य प्रांत के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला और 1956 तक इस पद पर रहे। जब मध्य भारत, मध्य प्रांत, विंध्य प्रदेश और भोपाल का विलय होकर नया राज्य मध्य प्रदेश बना, तो उन्हें 1 नवंबर 1956 को राज्य का पहला मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। यह पद उन्होंने बिना चुनाव लड़े ही संभाला।

Bilasa Bai Kevatin: बिलासा बाई केवटिन – लोक नायक

बिलासा बाई केवटिन का जन्म 19वीं सदी में हुआ था और वे छत्तीसगढ़ की एक वीर महिला व लोक नायिका के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे केवट समुदाय से थीं और अन्याय, शोषण व अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए जानी जाती थीं। उनके साहस, नेतृत्व और संघर्ष के कारण ही बिलासपुर शहर का नाम उनके नाम पर पड़ा, जो पहले “बिलासा की नगरी” कहलाता था। उन्होंने समाज में समानता और न्याय के लिए कार्य किया और कमजोर वर्गों के हक के लिए लड़ाईं लड़ीं। आज भी छत्तीसगढ़ में उन्हें महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय की प्रतीक माना जाता है।

Pt. Shyamalal Chaturvedi: पं. श्यामलाल चतुर्वेदी – साहित्यकार और पत्रकारिता के स्तंभ

पं. श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म 1926 में बिलासपुर जिले के कोटुमी गांव में हुआ। वे हिंदी पत्रकारिता और साहित्य के महान हस्ताक्षर थे। उन्हें 2018 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनकी रचनाएँ ‘भोला भोला राम बानीस’ और ‘पार्रा बार लाही’ छत्तीसगढ़ी साहित्य की धरोहर हैं।

CG Mahapurush List: इन महापुरुषों के योगदान से छत्तीसगढ़ ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। (CG Mahapurush kI jivani) उनकी शहादत और कार्यों को याद करते हुए राज्य सरकार और नागरिक समाज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

क्रमांकनामजन्ममृत्युविशेष योगदान
1.वीर नारायण सिंह1795, सोनाखान10 दिसंबर 18571857 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले छत्तीसगढ़ के पहले स्वतंत्रता सेनानी।
2.पं. सुंदरलाल शर्मा21 दिसंबर 1881, कुम्हारी28 दिसंबर 1940समाज सुधारक, दलित उत्थान, छुआछूत विरोधी, शिक्षा प्रसारक।
3.गुरु घासीदास18 दिसंबर 1756, गिरौदपुरी1850 (लगभग)सतनाम संप्रदाय के प्रवर्तक, “मनखे-मनखे एक समान” का संदेश।
4.मिनीमाता1920, कोहका, दुर्ग11 अगस्त 1973दलित-महिला अधिकारों की पक्षधर, देश की पहली दलित महिला सांसदों में से एक।
5.डॉ. खूबचंद बघेल19 जुलाई 1900, पथरी22 दिसंबर 1969छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के जनक, ‘राष्ट्रबंधु’ पत्र के संपादक।
6.स्वामी आत्मानंद1929, बरबंदा, रायपुर1986शिक्षा के माध्यम से सामाजिक upliftment, ‘विश्वास’ संस्था और ‘विवेक ज्योति’ पत्रिका की स्थापना।
7.पवन दीवान1950, देवपुरी, रायपुरछत्तीसगढ़ी लोक कला, गीत-संगीत और संस्कृति के संरक्षक।
8.ठाकुर प्यारेलाल सिंह21 दिसंबर 1891, राजनांदगांव20 अक्टूबर 1954सहकारिता आंदोलन के प्रवर्तक, मजदूर नेता, ‘छत्तीसगढ़ का गांधी’।
9.पं. रविशंकर शुक्ल2 अगस्त 1877, सागर31 दिसंबर 1956स्वतंत्रता सेनानी, मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री।
10.बिलासा बाई केवटिन19वीं सदी, बिलासपुरलोक नायिका, सामाजिक न्याय की प्रतीक, “बिलासा की नगरी” की प्रेरणा।
11.पं. श्यामलाल चतुर्वेदी1926, कोटमी, बिलासपुर7 दिसंबर 2018छत्तीसगढ़ी साहित्यकार, पद्मश्री सम्मानित, ‘भोला राम बानीस’ जैसी रचनाएँ।
12.चिंताराम टिकरिहा1880, कुम्हारी1982समाजसेवी, कृषि व शिक्षा के क्षेत्र में योगदान, ग्रामीण विकास।
13.चित्रसेन साहू1983 (लगभग), रायपुरविकलांगता के बावजूद पर्वतारोही, किलीमंजारो फतह, ‘मिशन इनक्लूजन’ के संस्थापक।

Biography of CG Mahapurush: छत्तीसगढ़ के महापुरुषों का जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी भी समाज की प्रगति केवल आर्थिक या तकनीकी विकास से नहीं होती, बल्कि उन लोगों के संघर्ष, बलिदान, विचार और कार्यों से होती है जो समाज को एक बेहतर दिशा देने का सपना देखते हैं। वीर नारायण सिंह की शहादत से लेकर गुरु घासीदास के सामाजिक समरसता के संदेश, मिनीमाता की नारी जागृति, और डॉ. खूबचंद बघेल के राजनीतिक विचार तक—हर व्यक्ति ने अपनी भूमिका निभाई है।

Great Men of Chhattisgarh: इन विभूतियों का योगदान न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि सम्पूर्ण भारत की आत्मा को छूता है। ये महापुरुष शिक्षा, समाज सुधार, स्वतंत्रता संग्राम, महिला सशक्तिकरण, लोक कला, और सांस्कृतिक चेतना के ऐसे स्तंभ हैं, जिनके बिना छत्तीसगढ़ की पहचान अधूरी है।

Great Personalities of Chhattisgarh: इसलिए, यह आवश्यक है कि आने वाली पीढ़ियाँ इन महापुरुषों से प्रेरणा लें और उनके विचारों व कार्यों को अपने जीवन में उतारें, ताकि एक समान, न्यायपूर्ण और सशक्त समाज का निर्माण हो सके।

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