Vindhyavasini Temple Dhamtari: 35 साल बाद खुली धमतरी की रहस्यमयी बावली, श्रद्धालुओं ने जल चढ़ाकर पाया पुण्य

Vindhyavasini Temple Dhamtari: छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित मां विंध्यवासिनी मंदिर में वर्षों से बंद पड़ी ऐतिहासिक बावली एक बार फिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दी गई। गंगा दशहरा के पावन अवसर पर इस बावली में जल अर्पण करने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। मंदिर ट्रस्ट की पहल पर 35 साल बाद बावली की खुदाई कर इसे पुराने स्वरूप में दोबारा जीवंत किया गया। अब यहां कॉरिडोर निर्माण की भी योजना है, जिससे मंदिर परिसर को नया धार्मिक और सांस्कृतिक रूप मिलने जा रहा है।

मां विंध्यवासिनी की कृपा से खुली ऐतिहासिक बावली

नगर के बिलाई माता मंदिर परिसर स्थित इस बावली को वर्षों पहले मलबे से पाटकर बंद कर दिया गया था। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आनंद पवार ने बताया कि मां की प्रेरणा से बावली की गहराई तक खुदाई करवाई गई, जहां सीढ़ियां अब भी पहले जैसी सुरक्षित मिलीं। इसे अब श्रद्धालुओं के लिए पूरी तरह खोल दिया गया है। मंदिर ट्रस्ट ने इस बावली को धार्मिक धरोहर के रूप में संरक्षित करने का फैसला किया है।

गंगा दशहरा पर विधिवत पूजा और जल अर्पण

5 जून को गंगा दशहरा के मौके पर मंदिर परिसर में वैदिक मंत्रोच्चारण और विधिवत पूजन के बाद महापौर रामू रोहरा और ट्रस्ट अध्यक्ष आनंद पवार ने सर्वप्रथम बावली में पवित्र जल अर्पित किया। इसके बाद श्रद्धालुओं ने गंगा, यमुना, त्रिवेणी संगम, तिरुपति, अमृतसर, चार धाम, बारह ज्योतिर्लिंग समेत कई तीर्थों से लाए जल को अर्पित कर पुण्य लाभ प्राप्त किया।

बावली का विशेष महत्व

वहीं पंडित नारायण दुबे ने बताया कि प्राचीन समय में बावली बनाया जाता था. बावली सीढ़ी नुमा कुंआ है, इसे प्राचीन समय में हर मंदिरों में बनवाया जाता था. जिससे वहां के सेवक पुजारी बावली में उतरकर जल लाकर देवी का स्नान कराते थे. जो जल बचता था उसी जल को चरणामृत के रूप में श्रद्धालुओं को दिया जाता था. यह बावली का विशेष महत्व है।

धमतरी में मां विंध्यवासिनी मंदिर है जहां माता विंध्यवासिनी (बिलाई माता) स्वयंभू हैं . सदियों पुराने इस मंदिर में बावली बनाया गया है. जहां पर हवन यज्ञ के पश्चात ज्योति कलश और जंवारा को विसर्जित करने का नियम है. इसे तालाब और नदियों में विसर्जन नहीं किया जाता. पंडित ने बताया कि जब भी विसर्जन किया जाता है तो ब्रह्ममुहूर्त में मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है. सिर्फ अकेला पंडित ही बावली वाले स्थान पर जाकर विसर्जन करता है. कोई भी बाहरी व्यक्तियों का उस वक्त प्रवेश निषेध रहता है अगर कोई इसे देख ले तो उसे अपशगुन माना जाता है- पंडित नारायण दुबे,सदस्य, मंदिर ट्रस्ट

बिल्ली से जुड़ी माता की कहानी

 माता विंध्यवासिनी को लेकर कई जनश्रुति है.लेकिन सबसे ज्यादा जो जनश्रुति प्रचलित है वो बिल्लियों से जुड़ी है. प्राचीन समय में धमतरी में गोड़ नरेश धुरूवा का राज था. आज जहां देवी का मंदिर है, वहां कभी घना जंगल था. जंगल भ्रमण के दौरान एक स्थान पर आकर राजा के घोड़े रुक गए. जब राजा ने आसपास खोजबीन की तो उन्हें दो जंगली बिल्लियां दिखी,जो एक काले पत्थर के आजू बाजू बैठी थी.ये बिल्लियां काफी डरावनी थी. राजा के आदेश पर तत्काल बिल्लियों को भगाकर पत्थर को निकालने का प्रयास किया गया, लेकिन पत्थर बाहर आने की बजाय वहां से जल धारा फूट पड़ी.इसके बाद राजा ने काम बंद करवा दिया।

राजा को आया स्वप्न  

राजा को स्वप्न आया.जिसमें देवी ने उन्हें दर्शन दिए. राजा से देवी ने कहा कि उन्हें जमीन के अंदर से निकालने का प्रयास व्यर्थ है.उसी स्थान पर पूजा अर्चना की जाए. राजा ने दूसरे दिन उसी जगह पर देवी की स्थापना करवा दी.आगे चलकर राजा ने देवी स्थान पर मंदिर बनवाया. मंदिर बनने के बाद देवी उठी और आज की स्थिति में आ गईं.ये मूर्ति आज भी प्रत्यक्ष प्रमाण देती है.क्योंकि पहले जिस ओर दरवाजा है उधर देवी का मुख था.लेकिन कालांतर में जब देवी पूरी तरह से बाहर आईं तो चेहरा द्वार से थोड़ा तिरछा हो गया. मूर्ति का पाषाण एकदम काला था. मां विंध्यवासिनी देवी की मूर्ति भी काली थी.उन्हें विंध्यवासिनी देवी और छत्तीसगढ़ी में बिलाई माता कहा जाने लगा. इस मंदिर को प्रदेश की 5 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

भावी योजना: मंदिर में बनेगा आकर्षक कॉरिडोर

इस ऐतिहासिक मौके पर महापौर रामू रोहरा ने घोषणा की कि विंध्यवासिनी मंदिर में जल्द ही एक भव्य कॉरिडोर बनाया जाएगा, ताकि दर्शन और पूजा में आसानी हो। शहर के दूसरे बड़े मंदिरों की तर्ज पर अब यहां भी सौंदर्यीकरण और सुविधाओं का विस्तार होगा।

शिक्षा और परंपरा के संगम में जुटे शहरवासी

पूजा कार्यक्रम में शहर के गणमान्य नागरिकों, जनप्रतिनिधियों, समाजसेवियों, वार्ड पार्षदों, ट्रस्ट सदस्यों और सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। कार्यक्रम का आयोजन धार्मिक श्रद्धा और सांस्कृतिक विरासत को एक बार फिर जीवित करने की भावना से किया गया। मंदिर ट्रस्ट की यह पहल अब श्रद्धालुओं के लिए नया अध्याय जोड़ रही है।

भविष्य में आकर्षण का केंद्र बनेगा विंध्यवासिनी मंदिर

ट्रस्ट के अनुसार, बावली के साथ-साथ मंदिर परिसर में आने वाले समय में और भी कई बदलाव किए जाएंगे। इन प्रयासों से यह स्थान धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है। श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं, स्वच्छ वातावरण और आध्यात्मिक माहौल विकसित किया जाएगा।


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Ravi Pratap Pandey

रवि पिछले 7 वर्षों से छत्तीसगढ़ में सक्रिय पत्रकार हैं। उन्होंने राज्य के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहराई से रिपोर्टिंग की है। जमीनी हकीकत को उजागर करने और आम जनता की आवाज़ को मंच देने के लिए वे लगातार लेखन और रिपोर्टिंग करते रहे हैं।

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