Dhamtari News: धमतरी कलेक्ट्रेट पहुंचे 50 से अधिक गांव के ग्रामीण, आज रायपुर में सीएम निवास घेरने की तैयारी

Dhamtari News: धमतरी जिले के 52 गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों ने आज कलेक्ट्रेट कार्यालय का घेराव किया, अपनी ज़मीन आबंटन की मांग को लेकर। ये वही ग्रामीण हैं जिनके पूर्वजों ने गंगरेल बांध के निर्माण के लिए अपनी ज़मीन और आशियाना छोड़ दिया था, लेकिन आज तक उन्हें पुनर्वास के नाम पर कुछ नहीं मिला है।
कलेक्ट्रेट घेराव के दौरान क्या हुआ?
गांधी मैदान से कलेक्ट्रेट तक पैदल मार्च करते हुए पहुंचे इन ग्रामीणों ने सक्षम अधिकारियों से मिलने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं मिले। इसके बाद, प्रदर्शनकारियों ने कलेक्ट्रेट के सामने ज्ञापन देने की कोशिश की, लेकिन कोई अधिकारी उपस्थित नहीं था। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की और अपनी मांगों को लेकर आक्रोश व्यक्त किया।
हाई कोर्ट का आदेश और प्रशासन की लापरवाही
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 2016 में आदेश दिया था कि जिला प्रशासन तीन महीने के भीतर गंगरेल डूब प्रभावितों को ज़मीन आबंटित करे। लेकिन चार साल बाद भी प्रशासन ने इस आदेश का पालन नहीं किया है। यही कारण है कि ग्रामीणों ने अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए कलेक्ट्रेट का घेराव किया।
आज रायपुर में मुख्यमंत्री निवास का घेराव की चेतावनी
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, तो वे आज यानी शुक्रवार को रायपुर में मुख्यमंत्री निवास का घेराव करेंगे। इसके लिए वे धमतरी से पैदल मार्च करते हुए रायपुर पहुंचेंगे। उनका कहना है कि यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है और वे इसे लेकर संघर्ष जारी रखेंगे।

तीसरी पीढ़ी की आवाज़
गंगरेल डूब प्रभावित जनकल्याण समिति के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे इन ग्रामीणों का कहना है कि यह उनकी तीसरी पीढ़ी है जो ज़मीन आबंटन की मांग कर रही है। पहले और दूसरे पीढ़ी के लोग संघर्ष करते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं, लेकिन प्रशासन ने उनकी मांगों को नजरअंदाज किया है।
प्रशासन पर गंभीर आरोप
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया है कि हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रशासन ने जानबूझकर उनकी मांगों को अनसुना किया है। उनका कहना है कि कई परिवार बेघर हो गए हैं और इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। उन्होंने प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप भी लगाया है।
गंगरेल डूब प्रभावित ग्रामीणों का संघर्ष एक लंबी लड़ाई का हिस्सा है, जो न्याय और पुनर्वास की उम्मीद में जारी है। प्रशासन की लापरवाही और अनदेखी ने इन ग्रामीणों को अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया है। अब देखना यह है कि प्रशासन उनकी मांगों को गंभीरता से लेकर समाधान की दिशा में कदम उठाता है या नहीं।