CG School Rationalization Controversy: रायपुर में शिक्षकों की काउंसिलिंग पर लगा ब्रेक: ऐसा क्या हुआ कि बीच में ही रोकनी पड़ी प्रक्रिया? अफसर भी थे लापता

CG School Rationalization Controversy: राजधानी रायपुर में शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण (Teacher Rationalisation) की प्रक्रिया मंगलवार को उस वक्त बवाल की भेंट चढ़ गई, जब साझा मंच ने खुलेआम शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। मेडिकल कॉलेज में चल रही काउंसिलिंग के दौरान भारी अव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही सामने आई, जिसके बाद पूरी प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया।
तीन जगह थी काउंसिलिंग, पर कहीं न दिखे ज़िम्मेदार अफसर
रायपुर में आज तीन अलग-अलग स्थानों पर शिक्षकों की काउंसिलिंग आयोजित की गई थी।
- प्राथमिक शिक्षक – पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम
- पूर्व माध्यमिक शिक्षक – मेडिकल कॉलेज, जेल रोड
- हाई स्कूल व हायर सेकेंडरी शिक्षक – रायपुरा स्थित अंग्रेजी माध्यम स्कूल
लेकिन हैरानी की बात ये रही कि तीनों ही जगहों पर DEO या BEO जैसे ज़िम्मेदार अधिकारी नदारद थे। न कहीं समुचित मार्गदर्शन था, न व्यवस्था का कोई ठोस ढांचा।
साझा मंच ने खोली पोल, निगम कमिश्नर को माननी पड़ी गलती
CG Teacher Rationalization: मेडिकल कॉलेज में मौजूद रायपुर नगर निगम कमिश्नर विश्वद्वीप बतौर नोडल अफसर मौजूद थे। जब साझा मंच के प्रांतीय संचालक विरेद्र दुबे ने काउंसिलिंग में हो रही खामियों को जोरदार तरीके से रखा, तो कमिश्नर ने खुद सूची में गड़बड़ियों को स्वीकार किया और सुधार के निर्देश दे दिए।
दुबे का कहना था कि विषयवार काउंसिलिंग न होने से कई शिक्षकों की नियुक्ति गलत जगह हो रही है। इससे वे वहां जाकर फिर अतिशेष की स्थिति में पहुंचेंगे, जिससे पूरी कवायद व्यर्थ हो जाएगी।

समयसीमा की उड़ी धज्जियां, अधिकारियों पर गिर सकती है गाज़
CG Teacher Union Protest: DPI ने 4 जून तक काउंसिलिंग पूरी कर रिपोर्ट 5 जून तक भेजने का निर्देश दिया था। लेकिन रायपुर में आज की स्थिति को देखते हुए तय समय सीमा पूरी होना अब नामुमकिन लगता है। ऐसे में DEO और BEO जैसे ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की पूरी संभावना है। सूत्रों की मानें तो निलंबन जैसी कठोर कार्रवाई भी हो सकती है।
शिक्षा विभाग की कार्यशैली फिर सवालों के घेरे में
CG Teacher Yuktiyuktkaran Protest: ये पूरा मामला एक बार फिर शिक्षा विभाग की लापरवाही को उजागर करता है। इतनी संवेदनशील और तकनीकी प्रक्रिया में जब ज़िम्मेदार अधिकारी ही नदारद हों, तो फिर गड़बड़ियों का होना लाज़मी है। काउंसिलिंग को लेकर बनाई गई प्रणाली, विषयवार आवंटन और जमीनी व्यवस्था – तीनों में गंभीर खामियां उजागर हो चुकी हैं। अब देखना ये है कि शिक्षा विभाग इस फजीहत से क्या सबक लेता है, या फिर अगली बार फिर कोई नया बवाल खड़ा होता है।
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