छत्तीसगढ़ का खुशहाल और समृद्ध गांव: छोटी करेली में उपलब्ध हैं कई सुविधाएं, समिति है गांव की सरकार, गांव का बसाहट प्राचीन इतिहास के हड़प्पा मोहनजोदड़ो सभ्यता के अनुरूप

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के मगरलोड विकासखंड में बसा है एक ऐसा गांव, जो आम गांवों से बिल्कुल अलग है। नाम है — करेली छोटी। गांव तो बहुत देखे होंगे आपने, लेकिन ऐसा गांव शायद ही देखा हो जहां न अपराध हो, न थाने की जरूरत, और न ही किसी योजना के लिए सरकार की ओर मुंह ताकना पड़े।
बसाहट प्राचीन इतिहास के हड़प्पा मोहनजोदड़ो सभ्यता के अनुरूप
अगर कोई कहे कि करेली छोटी की बनावट हड़प्पा या मोहनजोदड़ो सभ्यता की याद दिलाती है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।
यहां के हर घर का मुख्य दरवाज़ा सड़क पर खुलता है, घरों के पीछे ड्रेनेज सिस्टम है, और सड़कों की बनावट कुछ ऐसी है कि पूरा गांव चौराहों का जाल लगता है।

Harappan Mohenjodaro Civilization Kareli: 40 फीट चौड़ी मुख्य सड़कें, 20 फीट की गलियां, और हर रास्ता एक-दूसरे को समकोण में काटता है। ये सब तब हुआ जब 1953 में भोपाल से इंजीनियर बुलाकर गांव का मास्टर प्लान बनवाया गया था।

एक बाढ़ ने बदली सोच, दाऊ पवन कल्याण ने रच दिया इतिहास
1950 के दशक में गांव की किस्मत तब बदली जब हर साल बाढ़ से जूझने वाले इस गांव के मालगुजार दाऊ पवन कल्याण ने फैसला किया कि गांव को एक नई सुरक्षित जगह पर बसाया जाए।
36 एकड़ ज़मीन को चुना गया, प्लॉटिंग की गई और हर परिवार में जितने बेटे, उतने प्लॉट दिए गए। स्कूल, मंदिर, राशन दुकान, श्मशान, खेल मैदान, चौपाल, सबकी ज़मीन प्लानिंग में छोड़ी गई।

सरकारी मदद नहीं, खुद की कमाई से गांव का विकास
करेली छोटी गांव के पास है एक ग्राम विकास समिति, जिसमें हर ग्रामीण सदस्य पैसे जमा करता है। इसी पैसे से गांव में अब तक 1 करोड़ रुपये से ज्यादा के विकास कार्य हो चुके हैं।
आज भी समिति के पास 30 लाख रुपये से ज्यादा जमा हैं।
यह समिति जरूरतमंद परिवारों के अंतिम संस्कार तक का खर्च उठाती है। छोटे-छोटे विवाद भी यहीं सुलझ जाते हैं। थाने या अदालत की नौबत ही नहीं आती।

गांव में विराजमान हैं माँ रिक्छिन: मंदिर में मूर्ति नहीं, मगर आस्था अटल
Rikshin Mata Mandir Kareli: गांव की कुलदेवी माँ रिक्छिन, छत्तीसगढ़ की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक अनूठा प्रतीक हैं। महानदी किनारे बसे इस गांव में देवी का मंदिर तो है, लेकिन भीतर कोई मूर्ति नहीं है। माँ की पहचान लाल पालो (ध्वज) और घोड़े से होती है, जिसे पूरे नियम और विधि-विधान के साथ हर साल नया तैयार किया जाता है। मंदिर में महिलाओं को सज-धज कर प्रवेश की अनुमति नहीं होती, क्योंकि माँ रिक्छिन को कुंवारी देवी माना जाता है। दशहरा के दूसरे दिन देवी मंदिर से बाहर आती हैं और गांव की बहन चंडी माता से मिलने मगरलोड जाती हैं। भक्तों की आस्था ऐसी कि कोई खाली हाथ नहीं लौटता, और हर मनोकामना पूर्ण होती है। खास बात ये भी है कि मंदिर साल में केवल दो बार — दशहरा और होली पर खुलता है। इन खास दिनों में देवी की शोभायात्रा, बलि परंपरा, और भक्तों की भीड़, गांव को एक अलौकिक ऊर्जा से भर देती है। मगरलोडवासी एक दिन बाद दशहरा मनाते हैं क्योंकि उस दिन माँ रिक्छिन अपने बहन के दर्शन को पहुंचती हैं। माँ रिक्छिन की यह परंपरा और आस्था, करेली गांव को धार्मिकता की एक मिसाल बनाती है।
70 साल पुराना सिस्टम, आज भी उतना ही मजबूत
1952 में बनी समिति आज भी वैसे ही नियमों के साथ काम कर रही है। 7 से 15 सदस्यों की सुरक्षा और न्याय समिति हर विवाद को सुनती है और उसका फैसला आखिरी होता है।
जात-पात से ऊपर उठकर रहते हैं लोग
इस गांव की एक और खूबी यह है कि यहां 16 जातियों के लोग — जैसे साहू, यादव, राउत, मुस्लिम, सतनामी, निषाद, वैष्णव, लोहार आदि — आपसी मेलजोल से रहते हैं।
327 परिवारों का यह गांव हर साल 30 से 40 क्विंटल प्रति एकड़ धान पैदा करता है, जिससे गांव खुशहाल और आत्मनिर्भर बना हुआ है।
मिनी संसद है छोटी करेली की ग्राम समिति
छोटी करेली गांव की ग्राम समिति की बैठकें किसी लोकतांत्रिक संसद से कम नहीं होतीं। हर सदस्य को अपनी बात रखने से पहले सभापति से अनुमति लेनी पड़ती है, जिससे चर्चा अनुशासनपूर्वक और गरिमा के साथ संपन्न होती है। यही सुव्यवस्थित प्रक्रिया गांव के प्रशासन को प्रभावशाली और आदर्श बनाती है।
गांव के सरकारी कर्मचारियों ने संभाली जिम्मेदारी, युवाओं को बना रहे शिक्षा के प्रति जागरूक
गांव में सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों ने मिलकर एक अनोखी पहल की है। गांव में कार्यरत शिक्षक, पटवारी, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और अन्य विभागों से जुड़े कर्मचारी एक संगठनात्मक समिति बनाकर बच्चों और युवाओं के शैक्षणिक, सामाजिक और मानसिक विकास के लिए लगातार सक्रिय हैं। समिति समय-समय पर गांव में शिक्षा से जुड़ी गतिविधियां आयोजित करती है, जिसमें निबंध, चित्रकला, सामान्य ज्ञान, विज्ञान मॉडल जैसी प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं।
प्रतिभाओं को मिलता है मंच, सम्मान और प्रेरणा
समिति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि गांव में पढ़ाई, खेल या अन्य किसी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को सम्मानित कर मंच दिया जाता है, ताकि उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिले। बोर्ड परीक्षा में टॉप करने वाले, खेलों में मेडल लाने वाले या किसी अन्य उपलब्धि से गांव का नाम रोशन करने वाले बच्चों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाता है। इसके अलावा वृक्षारोपण, सांस्कृतिक आयोजन, खेलकूद जैसी गतिविधियों के जरिए बच्चों में टीम भावना और नेतृत्व क्षमता भी विकसित की जाती है। इस अनोखी पहल से गांव में शिक्षा के प्रति रुचि बढ़ी है और एक सकारात्मक माहौल बन रहा है।
पढ़े-लिखे युवा भी खेती से जुड़े, आधुनिकता और परंपरा का संतुलन
यहां के पढ़े-लिखे युवा भी खेती को अपनाए हुए हैं, परंपरागत खेती में अब आधुनिक तरीके शामिल हो रहे हैं। किसानों में तकनीकी समझ और मेहनत का तालमेल दिखता है।
कलेक्टर भी हुए कायल, मिलेगा सम्मान?
Kareli Chhoti Model Village: धमतरी कलेक्टर अविनाश मिश्रा ने गांव का मुआयना करने की बात कही है। अब इस गांव को राज्य स्तर के पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा सकता है। साथ ही यहां लघु उद्योग और स्वरोजगार को बढ़ावा देने की भी तैयारी है।
ऐसा गांव पूरे हिंदुस्तान को चाहिए
करेली छोटी कोई काल्पनिक या सरकारी प्रयोग नहीं है, यह एक गांव की सोच और सामूहिक प्रयास का जीवंत उदाहरण है।
यह गांव कहता है कि अगर नियत साफ हो, सोच दूरदर्शी हो और लोग एकजुट हों, तो गांव किसी शहर से कम नहीं हो सकता।